Achievers are Dreamers We Become What We Think About

Tuesday 30 May 2017

अंतिम दौड़


बहुत  समय  पहले  की  बात  है  एक  विख्यात  ऋषि  गुरुकुल  में  बालकों  को  शिक्षा  प्रदान  किया  करते  थे
ऋषिवर बोले , “ प्रिय  शिष्यों  , आज  इस  गुरुकुल  में  आपका  अंतिम  दिन  है . मैं  चाहता  हूँ  कि  यहाँ  से  प्रस्थान  करने  से  पहले  आप  सभी  एक  दौड़  में  हिस्सा  लें .

यह  एक  बाधा  दौड़  होगी  और  इसमें  आपको  कहीं  कूदना  तो  कहीं  पानी  में दौड़ना  होगा  और  इसके  आखिरी  हिस्से  में  आपको  एक  अँधेरी  सुरंग  से  भी  गुजरना  पड़ेगा .”

सभी ने ऐसे-तैसे   दौड़  ख़त्म  की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।

 ऋषिवर बोले “पुत्रों ! मैं  देख  रहा  हूँ  कि  कुछ  लोगों  ने  दौड़  बहुत  जल्दी  पूरी  कर  ली  और  कुछ  ने  बहुत अधिक  समय  लिया  , भला   ऐसा  क्यों  ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।

यह सुनकर एक  शिष्य  बोला , “ गुरु  जी  , हम  सभी  लगभग  साथ –साथ  ही  दौड़  रहे  थे  पर  सुरंग  में  पहुचते  ही  स्थिति  बदल  गयी …कोई  दुसरे  को  धक्का  देकर  आगे  निकलने  में   लगा  हुआ  था  तो  कोई  संभल -संभल  कर  आगे  बढ़  रहा  था …और  कुछ तो ऐसे  भी  थे  जो  पैरों  में  चुभ  रहे  पत्थरों  को  उठा -उठा  कर  अपनी  जेब  में  रख  ले  रहे  थे  ताकि  बाद  में  आने  वाले  लोगों  को  पीड़ा  ना  सहनी  पड़े…. 

इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की .”

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“ठीक है ! जिन  लोगों  ने  पत्थर  उठाये  हैं  वे  आगे  आएं  और  मुझे  वो  पत्थर  दिखाएँ  “, ऋषिवर  ने  आदेश  दिया .

आदेश  सुनते  ही  कुछ  शिष्य  सामने  आये  और  पत्थर  निकालने  लगे . पर  ये  क्या  जिन्हे  वे  पत्थर  समझ  रहे  थे  दरअसल  वे  बहुमूल्य  हीरे  थे .  सभी आश्चर्य  में  पड़  गए  और  ऋषिवर  की   तरफ  देखने  लगे .

“ मैं  जानता  हूँ  आप  लोग  इन  हीरों  के  देखकर  आश्चर्य  में  पड़  गए  हैं .” ऋषिवर  बोले।
“ दरअसल इन्हे मैंने ही उस सुरंग में डाला था , और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।

पुत्रों यह दौड़ जीवन की भागम -भाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है . पर  अंत में वही सबसे समृद्ध होता है जो इस भागम -भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है .

अतः  यहाँ  से  जाते -जाते  इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन  में  सफलता  की  जो  इमारत  खड़ी  करें  उसमे  परोपकार  की  ईंटे  लगाना  कभी  ना भूलें , अंततः  वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी । “



Beautiful Destination in East India 


Triple Filter Test - ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट


प्राचीन यूनान में सुकरात को महाज्ञानी माना जाता था. एक दिन उनकी जान पहचान का एक व्यक्ति उनसे मिला
और बोला, ” क्या आप जानते हैं मैंने आपके एक दोस्त के बारे में क्या सुना ?”
“एक मिनट रुको,” सुकरात ने कहा, ” तुम्हारे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि तुम एक छोटा सा टेस्ट पास करो. इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहते हैं.”
“ट्रिपल फ़िल्टर ?”
” हाँ, सही सुना तुमने.”, सुकरात ने बोलना जारी रखा.” इससे पहले की तुम मेरे दोस्त के बारे कुछ बताओ , अच्छा होगा कि हम कुछ समय लें और जो तुम कहने जा रहे हो उसे फ़िल्टर कर लें. इसीलिए मैं इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहता हूँ. पहला फ़िल्टर है सत्य.
क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि जो तुम कहने जा रहे हो वो सत्य है?
“नहीं”, व्यक्ति बोला, ” दरअसल मैंने ये किसी से सुना है और ….”


” ठीक है”, सुकरात ने कहा. ” तो तुम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि ये सत्य है या असत्य. चलो अब दूसरा फ़िल्टर ट्राई करते हैं, अच्छाई का फ़िल्टर. ये बताओ कि जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वो कुछ अच्छा है ?”

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” नहीं , बल्कि ये तो इसके उलट…..”
“तो”, सुकरात ने कहा , ” तुम मुझे कुछ बुरा बताने वाले हो , लेकिन तुम आश्वस्त नहीं हो कि वो सत्य है. कोई बात नहीं, तुम अभी भी टेस्ट पास कर सकते हो, क्योंकि अभी भी एक फ़िल्टर बचा हुआ है: उपयोगिता का फ़िल्टर. मेरे दोस्त के बारे में जो तू बताने वाले हो क्या वो मेरे लिए उपयोगी है?”
“हम्म्म…. नहीं , कुछ ख़ास नहीं…”
“अच्छा,” सुकरात ने अपनी बात पूरी की , ” यदि जो तुम बताने वाले हो वो ना सत्य है , ना अच्छा और ना ही उपयोगी तो उसे सुनने का क्या लाभ?” और ये कहते हुए वो अपने काम में व्यस्त हो गए..

Ravi Singh (Founder of Khalsa Aid)



Ravi Singh is the founder of Khalsa Aid which is an organisation dedicated to humanitarian work and claim to help for compassion, love, justice and hope.

As per his posts on social networking sites, he was of 12 years when he left Punjab. The short period after his migration is not considered as very lucky and cheerful by him now as he lost his right path till he got the news of his friend Channi of being tortured by Punjab police to death.

His friend was already died in 1989 but when he came to know about this however lately, he resoluted to change himself in order to become a true Sikh and to become aware of himself.

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His foundation of this organization is one of the consequence of this change and he own his everything to his friend.

His help for refugees is doing a great deal to humanity and they are indeed the reasons for arising hope with their work.

Khalsa Aid, established in 1999, is an international non-profit aid and relief organization founded on the Sikh principles of Nishkam (selfless) service and universal love. Khalsa Aid is a UK Registered Charity (#1080374) with the UK Charities Commission and also has volunteers in North America & Asia. Khalsa Aid has provided relief assistance to victims of disasters, wars, and other tragic events around the world.

Charity work undertaken by Khalsa Aid:
Haiti - Relief Programme January 2010


Pakistan - Providing Rehabilitation & Assistance
Indonesia - Art Therapy Sessions for Young Children
Turkey - Earthquake Response Relief Aid
Orissa (India) - Rehabilitating the School System After a Devastating Cyclone


Kosovo - Providing Assistance to Displaced Victims of Civil War & Genocide
Punjab India - Flood Relief - 2008
Bangladesh - December 2007
Somalia - 2003 during intense civil war

Ravi Singh handing a sweet to a frightened boy
The work of this charity is possible due to the generous donation by individuals and Gurdwaras. It is an important part of Sikhi to undertake global sewa for the poor and underprivileged or those subject to natural disasters. The organisation wished to thank all the people who have donated so generously to make the relief programs possible; a special thanks does to Wolverhampton Sikh community through Guru Nanak Sikh Gurdwara, Sedgly Street for their wonderful and continuous support



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The Star Fish


एक आदमी समुद्रतट पर चल रहा था। उसने देखा कि कुछ दूरी पर एक युवक ने रेत पर झुककर कुछ उठाया और आहिस्ता से उसे पानी में फेंक दिया। उसके नज़दीकपहुँचने पर आदमी ने उससे पूछा – “और भाईक्या कर रहे हो?”
युवक ने जवाब दिया – “मैं इन मछलियों को समुद्र में फेंक रहा हूँ।
लेकिन इन्हें पानी में फेंकने की क्या ज़रूरत है?”- आदमी बोला।
युवक ने कहा – “ज्वार का पानी उतर रहा है और सूरज की गर्मी बढ़ रही है।अगर मैं इन्हें वापस पानी में नहीं फेंकूंगा तो ये मर जाएँगी
आदमी ने देखा कि समुद्रतट पर दूर-दूर तक मछलियाँ बिखरी पड़ी थीं। वह बोला – “इस मीलों लंबे समुद्रतट पर न जाने कितनी मछलियाँ पड़ी हुई हैं। इसतरह कुछेक को पानी में वापस डाल देने से तुम्हें क्या मिल जाएगा? इससे क्या फर्क पड़ जायेगा?
युवक ने शान्ति से आदमी की बात सुनीफ़िर उसने रेत पर झुककर एक और मछली उठाई और उसे आहिस्ता से पानी में फेंककर वह बोला :
आपको इससे कुछ मिले न मिले
मुझे इससे कुछ मिले न मिले
दुनिया को इससे कुछ मिले न मिले
लेकिन इस मछली को सब कुछ मिल जाएगा
यह केवल सोच का ही फर्क है| सकारात्मक सोच (Positive thoughts) वाले व्यक्ति को लगता है कि उसके छोटे छोटे प्रयासों से किसी को बहुत कुछ मिल जायेगा लेकिन नकारात्मक सोच (Negative Thoughts) के व्यक्ति को यही लगेगा कि, यह समय की बर्बादी है?
यह हम पर है कि हम कौनसी कहावत पसंद करते है –
“अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता|”
या
“बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है”

Henry Ford




रास्ते की दूरियों को पलक झपकते दूर करती चमचमाती मोटरगाङियाँ, आज स्टेटस सिम्बल ही नही हैं बल्कि तेज रफ्तार जिंदगी की आवश्यकता है। भागती-दौङती जिंदगी को कारों के माध्यम हैनरी फोर्ड ने कुछ आसान बना दिया। कार को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने का श्रेय हैनरी फोर्ड को ही जाता है।

इस युग को नया औद्योगिक आयाम देने वाले हैनरी फोर्ड का जन्म अमेरीका के मिशिगन राज्य में डियर बोर्ध नामक स्थान पर 30 जुलाई, 1863 को हुआ था। हेनरी को आर्थिक उत्थान के आवश्यक सभी गुंण, अपनी माता मेरीलिटोगोट से विरासत में मिले थे। हैनरी के पिता विलयम फोर्ड एक साधारण किसान थे।

पाँच वर्ष की आयु में हैनरी का दाखिला पास ही के कस्बे के स्कूल में कराया गया था। पाँचवी पास करने के बाद आगे की पढाई के लिए हैनरी को घर से ढाई किलोमीटर पैदल जाना पङता था। पिता की यही इच्छा थी कि हैनरी एक अच्छा किसान बने किन्तु हैनरी का दिमाग दूसरी दिशा में व्यस्त रहता था। 11 वर्ष की उम्र में हैनरी के खिलौने आम बच्चों से अलग हट कर थे। चाय की केतली, खाङी हल तथा छोटे-छोटे पुर्जे उनके खिलौने हुआ करते थे। बहुत कम उम्र में ही वे पड़ोसीयों की घङियाँ सुधारने लगे थे। ये बात पिता को अच्छी नही लगती थी और वे उन्हे ठठेरा कहा करते थे।

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हेनरी जब मिशिगन राज्य में पढाई कर रहे थे, तब उन्होने खाङी में बाधँ बना दिया था जिसके कारण एक किसान के खेत मे पानी भर गया था और वे अध्यापक महोदय से शिकायत करने स्कूल पहुँच गया। अध्यापक महोदय को हैनरी की बुद्धिमता पर आश्चर्य भी हुआ किन्तु किसान का नुकसान हुआ था, इसलिए उन्होने हैनरी को बाँध तोङने की आज्ञां दी तथा किसान को संतुष्ट करने के लिए हैनरी को डांट भी लगाई।
शुरूवाती दौर में घङी सुधारने वाले हैनरी फोर्ड ने मोटरकार के आविष्कार तथा उसमें आधुनिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पिता की इच्छा के विरुद्ध हैनरी डेट्राइट चले आए और एक कारखाने में काम करने लगे किन्तु वहाँ से प्राप्त आमदनी से कार बनाने के सपने को साकार नही सकते थे। अतः एक सुनार के यहाँ पार्टटाइम काम करने लगे और शाम को घङियाँ भी सुधारते। डेट्राइट में रहते हुए कुछ ही समय हुआ था कि पिताजी की तबियत खराब होने का संदेश आया और वे घर वापस चले गये। खेत की पूरी जिम्मेदारी अब हैनरी के कंधो पर गई थी।
हैनर साल भर तक खेतों काम करते रहे। इस काम के दैरान हैनरी को लगा कि इस काम में काफी समय लगता है, अतः उन्होने विचार किया कि कृषि कार्यो में विज्ञान का प्रयोग करना चाहिए। उन दिनों ट्रैक्टर और फोडेशन का कहीं नामो निशान भी नही था। हैनरी ने खेती में काम आने वाले भाप के इंजनो में सुधार किया। आस-पास के किसानो के इंजन को सुधारने काम करने लगे। हैनरी के प्रयास से ऐसी विधियों का विकास हुआ जिससे एक वर्ष की फसल में केवल एक महीने ही काम करने की आवश्यकता होती थी। इसी बीच उनकी मुलाकात एक इंजन निर्माण कंपनी के प्रतिनिधि से हुई, उसने हैनरी को पूरे क्षेत्र का इंजन सुधारने का अनुबंध दिया।
हैनरी ने ट्रैक्टर की कल्पना की और घर पर ही एक बेलन बना दिया। बेलन में एक बेकार पङे घास काटने की मशीन के पहिए लगाए तथा परिक्षण के लिए गाङी को चलाया गाङी चालिस फुट तक चलकर रुक गई। सामान्य लोगों की नजर में ये प्रयोग सफल नही था, परंतु हैनरी का मानना था कि यदि गाङी आज 40 फुट चली है तो कल ज्यादा दूर भी चलेगी। हैनरी का मोटर कार का सपना साकार होने लगा था। वे 1891 में वापस डेट्राइट आए और रात में एलिस लाइटिंग कंपनी में काम करने लगे तथा दिन में लगों की टिप्पणियों से बेखबर मोटर कार पर प्रयोग करते रहे। उनकी बनाई कार लगभग दो वर्षों में बनकर तैयार हुई।
अप्रैल का महिना था, थोङी बूंदा-बाँदी हो रही थी। हैनरी अपनी पत्नी क्लारा के साथ बिना घोङे वाली गाङी को परखने के लिए निकल पङे। इस गाङी में टायर ओर गद्दी को छोङकर सभी भाग हैनरी के आविष्कार का ही परिणाम था। गाङी तेज आवाज करती हुई धुंआ छोङती हुई गली तक पहुँची। लोग आवाज सुनकर घरों से बाहर गये। सभी ने पहली बार बिना घोङे वाली गाङी देखी थी। इस सफलता ने फोर्ड के आत्मविश्वास को हौसला दिया। उस गाङी में उस समय बैक गेयर का प्रवधान नही था, अतः गाङी को वापस पिछे धक्का देकर पुनः स्टार्ट किया गया। ये गाङी भले ही आज जैसी गाङी नही थी, परंतु सभी गाङियों की जननी इसे कहा जा सकता है।
इसके बाद हैनरी फोर्ड ने गाङियों में अनेक सुधार किये। कार बनाने के लिए एक कारखाना भी खोले। सम्पन्न घरों के लोग उनकी गाङियों को खरीदने लगे। हैनरी फोर्ड की कल्पना हक़ीक़त में साकार हो गई थी। उनका कहना था कि उन्होने कभी सपने में भी नही सोचा था कि इस प्रयोग से वे धन कमाएंगे। लेकिन जीवन के अंतिम दिनो में वे विश्व के सबसे धनि व्यक्ति थे।

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फोर्ड कंपनी का कारखाना लगभग 200 एकङ जमीन पर फैला हुआ है। जिसमें पाँच सौ विभाग तथा हजारों लोग काम करते हैं। औद्योगिक को नया आयाम देने वाले फोर्ड मानविय करुणा की आवाज को भी सुनते थे। वैज्ञानिक एडिसन जैसे कई बुद्धिजीवी लोग उनके मित्र थे। मशीनों के बीच रहते हुए भी उनका मन मानव सेवा के लिए तत्पर रहता था। हैनरी फोर्ड अपनी आमदनी का एक अंश मानव कल्याण की सेवा में भी लगाते थे।
83 वर्ष की उम्र में 7 अप्रैल 1947 में हैनरी फोर्ड इहलोक छोङकर परलोक सिधार गये। आज भी दुनिया उनके आविष्कार से लाभान्वित हो रही है। घङियाँ सुधारने वाले हैनरी फोर्ड ने दुनिया को कार बनाना सिखा दिया। हैनरी फोर्ड ने ये सिद्ध कर दिया कि, मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।



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