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Thursday 1 June 2017

Tathagat Tulsi: The child prodigy


Tathagat Avatar Tulsi, now 25, had shot into fame in the late 1990s by obtaining a Bachelor's degree from Patna University at the age of 10. At 22, he became the youngest-ever teacher at IIT-Bombay when he joined it as assistant teacher in 2010.

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Tulsi, who was called one of the seven gifted youngsters in the world by the Time magazine in 2003, had hogged the limelight by passing the matriculation examination at the age of nine in 1997. He went on to get B.Sc. (honours)  and post-graduation degrees from Patna University at the age of 10 and 12 respectively. The Patna University Academic Council had allowed him to appear in the B.Sc. examination under special circumstances. Later, he did his PhD from the Indian Institute of Science, Bangalore.

His talent, however, came under scanner later and he was labeled a fake prodigy by sceptics. Tathagat remained in depression for a few years before he fought back to prove his critics wrong. He competed his doctoral research on the generalisations of the quantum search algorithm in 2009.

Tathagat, who name appears in the record books for being the youngest matriculate and youngest graduate in the country and claims to be the youngest scholar in the country to have a doctoral degree, aspires for nothing less than a Nobel now.

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Meet Ronen Chatterjee, India's youngest writer


Ronen Chatterjee is not particularly fond of books: till date, he hasn’t even read a single novel. Neither does he wish to. But he has always had stories in mind — and an urge to tell them.

At 11, he asked his mother to write them down. She suggested he write them himself to derive maximum satisfaction out of the creative process. Two years later, he started penning them down himself and today, this soft spoken Delhi lad is the country’s youngest author to have a novel to his credit.

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On his 15th birthday last year, he released "FIRE WITHIN" , a collection of seven stories published by Har-Anand Publications. “These are stories of three generations of tennis players.



The message is that you can achieve anything in life if you have the fire within,” says Chatterjee.

The journey has not been easy, though. No one — teachers, peers, relatives — took him seriously as a writer. “When the manuscript reached the Head of the English Department, my parents were advised that I should focus on studies,” says the student of Delhi’s DPS, RK Puram.

But Chatterjee kept writing and his stories got bigger and better. “I had no idea it would make me famous,” he laughs. More so, since after finishing the book, he got many rejection letters from publishers, who thought he was “too young” to write a book.

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Now, he is still savouring the new-found fame. “I was much sought after at the book launch last yea. I signed many copies at the event, including one for quiz master Siddharth Basu.”

And all the others who has almost written him off are now coming back to congratulate the young author. “My English teacher and Head of Department are quite happy with me now and they have even congratulated me. It’s nice to be a little famous.”

An accomplished author? Maybe. A voracious reader? Not yet. “I haven’t even read Harry Potter,” says the author, ready with his next work. “It’s about life in a boarding school,” is all that he is willing to tell you. Watch this space.


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Take Risk To Be Rich - करोड़पति बनना है तो नौकरी छोडिये !


चलिए, पहले एक छोटी से exercise करते हैं। आप अपने शहर के किन्ही पांच करोड़पतियों की list मन में सोचिये….. please इस step को miss मत कीजिये, सोचिये ज़रूर !!!
अब बताइये इस लिस्ट में क्या कोई ऐसा भी है जो नौकरी पेशा है? मेरी लिस्ट में तो नहीं है, 

मेरे दिमाग में जो नाम आये वो मै आपको बताना चाहूँगा।
Henry Ford
Dherubhai Ambani
Bill Gates
Mr.Munjal
इन सभी में एक बात common है। लोग इनके यहाँ नौकरी करते हैं पर ये किसी के यहाँ नौकरी नहीं करते। ये सभी उद्यमी हैं, Entrepreneurs हैं, Businessmen हैं पर employee नहीं हैं।

मैंने कुछ दोस्तों से भी ये प्रश्न किया उनकी सूची में भी किसी नौकरी करने वाले का नाम नहीं था। अब ये बात और है कि आप दीमाग पे जोर डालेंगे तो कुछ ऐसे लोग मिल जायेंगे पर इनमे से ज्यादातर के बाल या तो सफ़ेद हो चुके होंगे या फिर पूरी फसल ही साफ़ हो चुकी होगी। 🙂 अगर बाल सफ़ेद करा कर Crorepati बनना है तो नौकरी  बुरी नहीं है। तीन-चार promotion और 15- 20 साल में आप Crorepati बन ही जायेंगे… पर ऐसे बने तो बच्चों के लिए बनेंगे अपने लिए नहीं…और मज़ा तो अपने लिए बनने में है; क्यों? और अगर अपने लिए Crorepati बनना है तो खुद बनना होगा एक Entrepreneur.
यहाँ एक बात कहना चाहूँगा कुछ लोग ज्यादा पैसा कमाने कि इच्छा रखने वालों को उतनी respect  से नहीं देखते हैं, पर मुझे लगता है कि इस मंहगाई को देखकर उनके विचार में भी बदलाव आ चुका होगा….
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कितना कमाना ज्यादा कमाना है इसकी परिभाषा बड़ी तेजी से बदल रही है; मेरी नज़र मैं ज्यादा पैसे कमाने की इच्छा रखना एक अच्छी बात है, बशर्ते उसे कमाने के लिए गलत काम न किये जाएँ। और शायद इस article  को भी वही लोग पढ़ रहे होंगे जो ऐसी इच्छा रखते होंगे वरना  article का title पढ़ने के बाद ही वो किसी और topic  पर चले गए होते। चलिए अब आते हैं main मुद्दे पर :
पर नौकरी छोडें कैसे ? How Can Leave Job ?
सवाल बिलकुल ठीक है। पर उससे भी बड़ा एक सवाल है:, “नौकरी छोड़ी तो करेंगे क्या ?” अगर आपके मन में ये दुसरा सवाल आ रहा है तो उसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है। क्योंकि ये तो आपके अंदर से आने वाली आवाज़ है कि आप क्या करना चाहते हैं। और यदि यह नहीं आ रही है तो अभी आप इस तरह के step के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं…पर ये बात पक्की है कि यदि आप चाहें तो समय के साथ खुद को तैयार कर सकते हैं।
लेकिन यदि आप उनमे से हैं जिनका कोई सपना है, जो कुछ बड़ा, कुछ महान, कुछ अपना  करना चाहते हैं तो आपको पहले प्रश्न के बारे में सोचना ही होगा। क्योंकि अगर आप अभी नहीं सोचेंगे तो आगे आपके लिए ये सोचना और भी मुश्किल हो सकता है भविष्य में:
आपकी जिम्मेदारियां बढ़ जायेंगी यानी आपकी risk लेने की क्षमता घट जायेगी।
हो सकता ही आपकी salary बढ़ जाए और आप खुद को समझा लें। कि “चल भाई पैसे आ तो रहे हैं…अब और क्या चाहिए।”
कुछ लोग सोच सकते हैं कि lecture देना आसान है पर करना बहुत मुश्किल है। बात सच है, पर ये भी सच है कि ये करना मुश्किल ज़रूर है पर असंभव नहीं।

अगर Dheerubhai Ambani ने petrol pump की नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Reliance जैसी company होती? अगर Narayan Murthy ने Patni Computers की अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Infosys का कोई वजूद होता? Amitabh Bachchan ने भी पहले  Shaw Wallace और बाद में Bird & Co, नाम की  एक shipping firm में काम किया, अगर उन्होंने भी अपने दिल कि आवाज़ नहीं सुनी होती तो भला भारत को कहाँ मिलता इतना बड़ा महानायक?

ये बहुत बड़े-बड़े उदाहरण हैं, जिन्हें हम सब जानते हैं पर यकीन जानिए कि ऐसी हजारों success stories हैं, जहाँ पर लोगों ने अपनी सोच को हकीकत में बदल कर दिखाया है…गांव की गलियों से निकल कर शहर की बुलंदियों को अपना बनया है। खुद बने हैं करोड़पति और कईयों को लखपति बनाया है।

पर अभी भी हमारा जो पहला सवाल था कि “पर नौकरी छोडें कैसे?”वो वहीँ का वहीँ बना हुआ है। कहने की बात नहीं है कि ये एक एक बहुत ही बड़ा step है, और बस यूँहीं नहीं लिया जा सकता है। इस क्रांतिकारी कदम को वही उठा सकता है जिसके मन में कुछ अपना करने की तीव्र इच्छा हो और वो अपने plan  को execute करने के लिए बहुत ज्यादा passionate हो। जिनके अंदर वाकई में कुछ कर गुजरने की दीवानगी होती है, वो इधर-उधर की बातें ज्यादा नहीं सोचते और बस लग जाते हैं अपने प्रयासों में।

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पर हममें  से ज्यादातर लोग (including me) कुछ करना तो चाहते हैं, पर हमारे अंदर एक डर सा लगा होता है कि कहीं हम fail  हो गए तो जो है वो भी चला जायेगा। ये डर वाजिब भी है। इसीलिए मेरी समझ से एक बीच का रास्ता निकालना अच्छा साबित हो सकता है, जैसे कि कोई Side-Business शुरू कर के। ये एक पुराना अजमाया हुआ तरीका है, जो आपने अपने आस-पास देखा भी होगा। Office timing के बाद और छुट्टी के दिनों में लोग अपने साइड-बिजनेस को करते हैं और जब धीरे-धीरे बिजनेस ट्रैक पर आ जाता है तो अपनी नौकरी छोड़ कर पूरा समय business  में लगाते हैं। 

एक छोटा सा उदहारण देना चाहूँगा जो मैंने Rashmi Bansal जी की “Connect The Dots” book  में पढ़ा था। N Mahadevan के अंदर एक Hotelier बनने की चाहत थी पर भाग्य ने उन्हें एक Professor बना दिया था, पर उन्होंने भाग्य के इस फैसले को चुनौती दी और Madras University में अपनी Professor की prestigious job छोड़ कर उन्होंने multi-million dollar Food Empire खड़ा कर दिया।
सुबह 9 बजे से शाम को 4:30 बजे तक पढाने के बाद इन्होने काम समझने के लिए एक और जॉब पकड़ ली, वो रोजाना शाम 6 से रात 12 बजे तक एक hotel में duty  करने लगे। जब काम समझ आ गया और कुछ पैसे इकठ्ठा हो गए तो उन्होंने खुद का एक Chinese restaurant शुरू कर दिया।आज उनके restaurants 16 देशों में हैं, जिनमे कुल 3000 employee  काम करते हैं। इन्होने खुद तो MBA  नहीं किया है पर IIM-Ahmedabad से pass-out बन्दों को business सँभालने के लिए रखा हुआ है।

बहुत सारे लोग बहुत सारी ideas के साथ अपने-अपने सपनो को साकार करने में लगे हुए है, और कर रहे हैं,हम इंसानों में यही तो खास बात है,हम जो सपने देखते हैं उन्हें साकार भी कर सकते हैं।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि –
कोई risk ना लेना ही जिंदगी का सबसे बड़ा risk है…
कोई risk ना लेना ही जिंदगी का सबसे बड़ा risk है…

जेल से निकलना है तो सुरंग बनाइये! - To Be Success and Happy



आपने movies में कोई ऐसा scene ज़रूर देखा होगा जिसमे hero jail से भागने के लिए एक सुरंग बनाता  है और finally उस जेल से फरार हो जाता है. काफी exciting होता है ये, नहीं!

पर आज मैं आपको खुद यही काम करने के लिए कह रहा हूँ …मैं आपको एक सुरंग बनाने के लिए कह रहा हूँ..क्योकि आप भी अपनी life के hero हैं और unfortunately एक virtual jail में क़ैद हैं …एक ऐसी जेल जिसमे जाने से पहले आपको पता भी नहीं था की वो एक जेल है….. आप किसी ऐसी job, business या काम में फंस चुके हैं जो आपको बिलकुल पसंद नहीं है …कभी कभी तो आप frustrated feel करते हैं …क्योंकि आप यहाँ वो नहीं कर रहे होते जो आप सबसे अच्छे ढंग से कर सकते हैं…आप खुद इसे छोड़ना भी चाहते हैं लेकिन financial obligations की वजह से छोड़ नहीं पाते..
मत accept करिए इस condition को, अपनी सुरंग बनाना शुरू करिए …अपने दिल का काम शुरू करिए …अगर नहीं पता कि वो क्या है तो उसे तलाशिये ….पर उस काम को ज़िन्दगी भर मत करिए जिसे आप पसंद नहीं करते …. जो आपको mediocre बनाता है. इस बात को हमेशा याद रखिये कि – जिस चीज को आप चाहते हैं उसमे असफल होना जिस चीज को आप नहीं चाहते उसमे सफल होने से बेहतर है. कैसे बनाएं सुरंग ?
कैसे से ज्यादा ज़रूरी है की क्यों बनाएं … जेल में बहुत से कैदी होते हैं पर हीरो ही सुरंग क्यों बना पाता है, क्योंकि उसके सामने एक motive होता है, ये motive ही उसे इतना कठिन काम करने की inspiration देता है …आपका motive क्या है ??…क्या already आपके दिमाग में वो चीज है जो आप current job/ work को छोड़ कर करना चाहते हैं ? …अगर नहीं है तो इस बारे में सोचना बेकार है, ऐसे में अगर आप सुरंग बनाने में कामयाब हो भी जाते हैं तो पता है वो कहाँ निकलेगी ???

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तो अगर आपको लगता है कि आप किसी जेल में बंद हैं तो सबसे पहले आपको जानना होगा कि यहाँ से निकल कर आप करना क्या चाहते हैं, what is that excites you, किस चीज को लेकर आप passionate हैं?
Friends, most of us कभी न कभी किसी चीज को लेकर excited होते हैं …सपने बुनने लगते हैं …आपने लोगों को कहते सुना या खुद भी कहा होगा, “ मैं एक restaurant शुरू करने वाला हूँ ”, “ मैं एक xyz company डालने वाला हूँ …”, etc..but most of the people just talk, they don’t act.
अगर आपको अपना passion जानना है तो ACT करना होगा, जो चीज बहुत appeal करे उसे कर डालिए …don’t let the excitement die. कर के ही जाना जा सकता है की आप सचमुच उस काम के लिए बने हैं या नहीं. अब लौट कर आते हैं अपने basic question पर, “कैसे बनाएं सुरंग ?” हीरो क्या करता है ?… किसी औजार का प्रयोग करता है ….आपको भी कुछ ‘औजारों’ की ज़रुरत पड़ेगी और वो औजार हैं …आपकी skills, आपका knowledge. आप जो करना चाहते हैं उससे related knowledge और skills gather कीजिये.
उसके बाद औजार का प्रयोग करिए …. सिर्फ औजार हाथ में आ जाये  और Hero उसे लेकर बैठा रहे तो क्या सुरंग बन पायेगी ? नहीं. आपको भी अपने औजारों को प्रयोग में लाना होगा. समय निकालना होगा.
हीरो सुरंग कब बनाता है …दिन में जब सब काम कर रहे होते हैं …नहीं, उस वक़्त तो वो भी काम करता है …आप भी उस वक़्त वही करिए जो आप कर रहे हैं …पर जिस वक़्त सब आराम कर रहे होते हैं …सो रहे होते हैं …मैच के मजे ले रहे होते हैं …facebook से चिपके हुए होते हैं….. उस वक़्त आप अपनी सुरंग बनाइये …अपना काम करिए … ये आसान नहीं है …इसमें time लगेगा … साल -दो साल या फिर और, सुरंग एक दिन में नहीं बनती.., …बहुत कुछ sacrifice करना होगा ….थक कर रुक जाने का दिल करेगा …पर आपको चलते रहेना होगा ….

और चलते -चलते एक दिन आ ही जायेगा जब आप जेल के बहार होंगे ….अपनी नयी दुनिया में, आज़ाद, अपने नए काम के साथ… खुशियाँ बटोरते …खुशियाँ लुटाते …
All the best!





मौत से लड़कर बने मैराथन धावक Major D. P. Singh Indian Blade Runner


15 जुलाई 1999, भारत पाकिस्तान कारगिल युद्ध
हिमालय के युद्ध क्षेत्र में मेजर देवेन्द्र पाल सिंह (Major Devender Pal Singh) दुश्मनों से लड़ते हुए बुरी तरह से घायल हो चुके थे| एक तोप का गोला उनके नजदीक आ फटा| उन्हें नजदीकी फौजी चिकित्सालय लाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया|
लेकिन 25 वर्ष का वो नौजवान सैनिक मरने को तैयार नहीं था |
जब उन्हें नजदीकी मुर्दाघर ले जाया गया, तो एक अन्य चिकित्सक ने देखा कि अभी तक उनकी साँसे चल रही है| मोर्टार बम्ब के इतने नजदीक से फटने के बाद किसी भी सामान्य व्यक्ति का बचना नामुनकिन होता है, लेकिन देवेन्द्र पाल सिंह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे| वे मौत से लड़ने को तैयार थे|
लहूलुहान देवेन्द्रपाल सिंह की अंतड़िया खुली हुई थी| चिकित्सको के पास कुछ अंतड़िया काटने के अलावा कोई चारा नही था| उन्हें बचाने के लिए उनका एक पैर भी काटना पड़ा, लेकिन किसी भी कीमत पर मेजर मरने को तैयार नही थे |

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मेजर ने इस हादसे में न केवल अपना एक पैर खोया बल्कि वे कई तरह की शारीरिक चोटों और समस्याओं से घिर चुके थे – उनकी सुनने की क्षमता कम हो चुकी थी, उनके पेट का कई बार ऑपरेशन हुआ|
आज इतने वर्षों बाद भी बम के 40 टुकड़े उनके शरीर के अलग अलग भागों में मौजूद है जिसे निकाला नहीं जा सका|
देवेन्द्र कहतें है –
“वास्तविकता को समझना और उस पर पार पाना बहुत लोगों के लिए कठिन होता है}लेकिन मैं और मेरे साथी जो घायल हुए थे, हमारे लिए ये गौरव की बात थी| क्योंकि हम हमारे देश की रक्षा करते वक्त घायल हुए थे |

मेजर की इच्छाशक्ति और मजबूत इरादों से उनकी जान तो बच गई लेकिन उन्हें अब एक नया जीवन जीना सीखना था |
उन्होंने निश्चय किया की अब वे अपनी अपंगता के बारे में और नही सोचेंगे| उन्होंने अपनी इस कमजोरी एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया|
वे एक वर्ष तक चिकित्सालय में रहे, किसी को भी विश्वास नही था कि वे अब कभी चल भी पाएंगे, लेकिन देवेन्द्र कुछ को अपंगता की जिंदगी स्वीकार नहीं थी| उन्होंने निश्चय किया कि –
“वे न केवल चलेंगे  बल्कि दौड़ेंगे|”
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उन्होंने बैशाखी के सहारे चलना शुरू कर दिया| कुछ समय बाद उनके कृत्रिम पैर लगा दिया गया| लेकिन कृत्रिम पैरों के साथ चलना इतना आसान नहीं था, देवेन्द्र को हर दिन भयानक दर्द सहना पड़ता था|
जब वे गिरे तो एक नए उत्साह के साथ उठ खड़े हुए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी|
देवेन्द्र हर रोज सुबह 3 बजे उठ जाते थे और अपनी प्रैक्टिस शुरू कर देते| कुछ महीनों की प्रैक्टिस के बाद देवेन्द्रपाल पांच किलोमीटर तक चलने लग गए| कुछ समय बाद उनकी मेहनत रंग लाई और वे अपने कृत्रिम पैर से मैराथन में दौड़ने लगे|
फिर उन्हें साउथ अफ्रीका से फाइबर ब्लेड से बने अच्छे कृत्रिम पैरों के बारे में जानकारी मिली जो अधिक लचीले और दौड़ने के लिए बेहतर थे|
इस तरह धीरे-धीरे उनकी दौड़ने की गति बढ़ती गई और उन्होंने अपनी विकलांगता को हरा दिया|

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17 वर्ष बाद आज देवेन्द्र भारत के एक सफल ब्लेड रनर है और उनके नाम 2 वर्ल्ड रिकॉर्ड (World Records) है| देवेन्द्र कई मैराथन दौड़ों में हिस्सा ले चुके है और आज भी वे थकते नहीं|
42 वर्षीय देवेन्द्र ब्लेड रनर होने के साथ साथ एक सफल प्रेरक वक्ता (Motivational Speaker) भी है| वे अपने जैसे लोगों को प्रेरित करने के लिए The Challenging Ones. नाम से एक ग्रुप भी चलाते है|

मुझ जैसे लोगों को “Physically Challenged”(विकलांग” या “कमजोर”) कहकर संबोधित किया जाता है लेकिन मुझे लगता है कि हम “Challenger(चैलेंजर)” है     
– मेजर देवेन्द्र पाल सिंह 
देवेन्द्रपाल सिंह जैसे लोग इस देश के सच्चे हीरो है और हम उन्हें सलाम करते हैं| 



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समय की कीमत : VALUE OF TIME


कल्पना कीजिए कि आपके पास एक बैंक अकाउंट है (Bank Account) और हर रोज सुबह उस बैंक अकाउंट में 86,400 रूपये जमा हो जाते है, जिसे आप उपयोग में ले सकते है| आप रूपयों को बैंक अकाउंट (Bank Account) से निकाल कर अपनी तिजोरी में जमा करके नहीं रख सकते| इस बैंक अकाउंट में कैरी फोरवर्ड (Carry Forward) का सिस्टम नहीं है यानि कि जिन रूपयों को आप उपयोग में नहीं ले पाते, वह रूपये शाम को वापस ले लिए जाते है और आपका अब उन पर कोई अधिकार नहीं रहता|

यह बैंक अकाउंट कभी भी बंद हो सकता है| हो सकता है कि कल ही यह बैंक अकाउंट (Bank Account) बंद हो जाए या फिर 2 वर्ष बाद या फिर 50 वर्ष बाद| लेकिन इतना तो निश्चित है कि यह बैंक अकाउंट एक दिन जरूर बंद होगा|

ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे????

जाहिर है आप पूरे के पूरे 86,400 रूपयों का उपयोग कर लेंगे और इन 86,400 रूपयों का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करेंगे क्योंकि यह बैंक अकाउंट (Bank Account) कभी भी बंद हो सकता है|

समय अनमोल है: TIME IS PRECIOUS
क्या आप जानते है कि ऐसा ही एक बैंक अकाउंट हमारे पास होता है जिसका नाम है “जिंदगी (Life)” और इस “जीवन” रुपी बैंक अकाउंट में प्रतिदिन 86,400 सेकंड्स (Seconds) जमा होते है जिनका उपयोग कैसे करना है यह हम पर निर्भर करता है| हम चाहें तो इन 86,400 सेकंड्स का उपयोग बेहतरीन कार्यों के लिए कर सकते है और अगर ऐसा नहीं करते तो यह व्यर्थ हो जाएंगे| यह जीवन रुपी बैंक अकाउंट कभी भी बंद हो सकता है इसलिए देर मत कीजिए आपके जीवन का हर पल अमूल्य है इसलिए समय का सदुपयोग कीजिए
अगर किसी को भी ऐसा बैंक अकाउंट दे दिया जाए जिसमें रोज 86,400 रूपये जमा हो तो वह व्यक्ति बहुत खुश हो जाएगा और एक रूपया भी व्यर्थ नहीं गवाएंगा | क्या हमारे जीवन के एक सेकंड की कीमत एक रूपये से भी कम है| हम कैसे अपने जीवन की सबसे अनमोल सम्पति को ऐसे ही व्यर्थ गँवा सकते है|

खोया हुआ धन फिर कमाया जा सकता  है, लेकिन खोया हुआ समय वापस नहीं आता| उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है। हर एक दिन को व्यर्थ गंवाना आत्महत्या करने के समान है| बिना समय प्रबंधन के आज तक कोई भी सफल नहीं हुआ|

कबीर दास जी का यह छोटा सा दोहा, जीवन का सबसे बड़ा मंत्र बता देता है-

 काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
 पल में परलै होयेगी, बहुरी करेगा कब।।

 बीते हुए कल को भूल जाइए, उसका आज कोई वजूद नहीं| आज आपका है, आज एक नयी शुरुआत कीजिए|

 “जो व्यक्ति अपने समय को नष्ट कर देते है, समय उन्हें नष्ट कर देता है।’’




स्टीफन हॉकिंग जिन्होंने मौत को मात दे दी


8 जनवरी 1942, को स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) का जन्म हुआ था। हालांकि वे एक अच्छे शिक्षित परिवार में पैदा हुए थे, परन्तु उनके परिवार की आर्थिक अवस्था ठीक नहीं थी।  द्वितीय विश्व युद्ध का समय आजीविका अर्जन के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था और एक सुरक्षित जगह की तलाश में उनका परिवार ऑक्सफोर्ड आ गया।
आप को यह जानकार अचरज होगा कि जो Stephen Hawking आज इतने महान ब्रह्मांड विज्ञानी है, उनका स्कूली जीवन बहुत उत्कृष्ट नहीं था|
वे शुरू में अपनी कक्षा में औसत से कम अंक पाने वाले छात्र थे, किन्तु उन्हें बोर्ड गेम खेलना अच्छा लगता था| उन्हें गणित में बहुत दिलचस्पी थी, यहाँ तक कि उन्होंने गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए कुछ लोगों की मदद से पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हिस्सों से कंप्यूटर बना दिया था|

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ग्यारह वर्ष की उम्र में स्टीफन, स्कूल गए और उसके बाद यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड गए| स्टीफन गणित का अध्ययन करना चाहते थे लेकिन यूनिवर्सिटी कॉलेज में गणित  उपलब्ध नहीं थी, इसलिए उन्होंने भौतिकी अपनाई।
ऑक्सफोर्ड में अपने अंतिम वर्ष के दौरान हॉकिंग अक्षमता के शिकार होने लगे| उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने और नौकायन में कठिनाइयों का समाना करना पड़ा| धीरे-धीरे यह समस्याएं इतनी बढ़ गयीं कि उनकी बोली लड़खड़ाने लगी। अपने 21 वें जन्मदिन के शीघ्र ही बाद, उन्हें Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) नामक बीमारी से ग्रसित पाया गया| इस बीमारी के कारण शरीर के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते है और अंत में मरीज की म्रत्यु हो जाती है।
उस समय, डॉक्टरों ने कहा कि स्टीफन हॉकिंग दो वर्ष से अधिक नहीं जी पाएंगे और उनकी जल्द ही मृत्यु हो जाएगी|
धीरे-धीरे हॉकिंग की शारीरिक क्षमता में गिरावट आना शुरू हो गयी|  उन्होंने बैसाखी का इस्तेमाल शुरू कर दिया और नियमित रूप से व्याख्यान देना बंद कर दिया। उनके शरीर के अंग धीरे धीरे काम करना बंद हो गये और उनका शरीर धीरे धीरे एक जिन्दा लाश समान बन गया |
लेकिन हॉकिंग ने विकलांगता को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। उन्होंने अपने शोध कार्य और सामान्य जिंदगी को रूकने नहीं दिया|
जैसे जैसे उन्होंने लिखने की क्षमता खोई, उन्होंने प्रतिपूरक दृश्य तरीकों का विकास किया यहाँ तक कि वह समीकरणों को ज्यामिति के संदर्भ में देखने लगे।
विकलांगता पर विजय 
जब हर किसी ने आशा खो दी तब स्टीफन अपने अटूट विश्वास और प्रयासों के दम पर इतिहास लिखने की शुरुआत कर चुके थे| उन्होंने अपनी अक्षमता और बीमारी को एक वरदान के रूप में लिए । उनके ख़ुद के शब्दों में “वह कहते हैं,
“मेरी बिमारी का पता चलने से पहले, मैं जीवन से बहुत ऊब गया था| ऐसा लग रहा था कि कुछ भी करने लायक नहीं रह गया है।”
लेकिन जब उन्हें अचानक यह अहसास हुआ कि शायद वे अपनी पीएचडी भी पूरी नहीं कर पायेंगे तो उन्होंने, अपनी सारी ऊर्जा को अनुसंधान के लिए समर्पित कर दिया।
अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने यह भी उल्लेख किया है –

“21 की उम्र में मेरी सारी उम्मीदें शून्य हो गयी थी और उसके बाद जो पाया वह बोनस है ।”

उनकी उनकी बीमारी  ठीक नहीं हुयी और उनकी बीमारी ने उन्हें व्हीलचेयर पर ला दिया और उन्हें एक कंप्यूटर मशीन के माध्यम से बात करने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन वे कभी रुके नहीं|
उनके ख़ुद के शब्दों में

” हालांकि मैं चल नहीं सकता और कंप्यूटर के माध्यम से बात करनीपड़ती हैलेकिन अपने दिमाग से मैं आज़ाद हूँ

                                       2007 में स्टेफन हाकिंग जीरो ग्रेविटी पर उड़ते हुए |
बावजूद इसके कि स्टीफन हॉकिंग का शरीर एक जिन्दा लाश की तरह हो गया था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी| वे यात्राएं करते है, सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते है और आज लगभग 74 वर्ष की उम्र में निरंतर अपने शोध कार्य में लगे हुए है। उन्होंने विश्व को कई महत्वपूर्ण विचारधाराएँ प्रदान की और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपना अतुल्य योगदान दिया|

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वे अंतरिक्ष में जाना चाहते है और वे कहते है कि उन्हें ख़ुशी होगी कि भले ही उनकी अंतरिक्ष में मृत्यु हो जाए|
जीने की इच्छा और चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्परता से स्टेफन हाकिंग ने यह साबित कर दिया कि मृत्यु निश्चित है, लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच कैसे जीना चाहते हैं वह  हम पर निर्भर है|
हम ख़ुद को मुश्किलों से घिरा पाकर निराशावादी नज़रिया लेकर मृत्यु का इंतज़ार कर सकतें या जीने की इच्छा और चुनौतियों को स्वीकार कर ख़ुद को अपने सपनों के प्रति समर्पित करके एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकते है|


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