Thursday 8 June 2017

Golden Memories of Childhood - बचपन की सुनहरी यादे

जो अच्छा नहीं था वो आज याद आता हैं, इंसान फ़ितरत का यह सबसे उम्दा नमूना हैं जो कभी एक पल को बर्दाश्त नहीं था आज उसी की तलाश करता हैं, चाहे किसी का कितना ही बुरा बचपन गुजरा हो, लेकिन ऐसा कोई नहीं जिसे अपने बचपन की याद न सताती हो. अगर आप किसी व्यक्ति से पूछे की आपके जीवन के सुनहरे दिन कौन से थे तो वह कहेगा “बचपन”

जी हां सभी को यही दिन मिठाई से भी ज्यादा मीठे और सुनहरे लगते हैं. तो चलिए पढ़िए बचपन के कुछ किस्सो के बारे में.

बचपन की सुनहरी यादे – GOLDEN MEMORIES OF CHILDHOOD

मसरूफियत के दिन हैं. स्कूलों की परीक्षाएं सर पर हैं, इसलिए सब व्यस्त है. दो लम्हे की भी फुरसत नहीं. लेकिन यह दो क्षण निकाल लीजिये. दो दुनियाओं को देखने, समझने और मुस्कुराने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता.

बचपन स्कुल घर और दोस्तों से जुडी चंद बातें और चीजें ऐसी है जो सबको एक समय पर जहर लगती हैं और बस चंद सालों के फासले पर उनका इन्तेजार रहता हैं. पेन्सिल थी, तो स्याही वाले पेन की चाह थी – पेन्सिल छिलना, नोंक बनाना झंझट लगता था. आज जेल पैन तक आ गए, तो पेन्सिल छिलने का इत्मिनान और छिलने से आकृतिया बनाने की होड़ याद आती हैं.

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स्कुल जाना, तो शायद ही किसी को पसंद हो – बस्ता जमाना Classes, के बारे में सोच-सोचकर दुबले होना, लगता था की जब इस दौर से निकल जायेंगे तब जिंदगी के मजे आएंगे, आज दुपहर तीन बजे घर लौटने की छूट मिले, तो शायद ही कोई ऐसा हो जो इंकार करे.

School Uniform तो हर सुबह याद आती हैं – जो उन दिनों ऊब का masterstroke लगती थी. आज अलमारी खोलकर खड़े होते हैं की क्या पहने, तो बड़ी याद आती हैं वो बोरींग सी यूनिफार्म जिसके रहते कुछ और सोचने की जरुरत ही नहीं थी.

दोपहर में कोई सोता है माँ ?? – सब ने कभी न कभी ऐसा कहा ही होगा. और आज ? दफ़्तरर में खाना खाने के बाद जब आंखें मुंदने लगती हैं तो कहते हैं. दोपहर में सोना नसीब वालों को मिलता हैं.

पापा इतने लंबे रास्ते से क्यों लेकर जा रहे हैं ? – तब हर जगह पहुंचने की कितनी जल्दी हुआ करती थी. आज लौंग ड्राइव एक लक्ज़री लगती हैं. कही न पहुंचना हो, बस यूंही घूमें अब मुमकिन कहां!

मां कहे की घर पर रुकना आज – याद है कितना बवाल मचाते थे घर पर बोर हो जायेंगे क्या करना होता हैं घर में ? आज घर पर रुक कर चंद आराम के पल बिताने को कोई नहीं कहता, यह सवाल उठाने का मन करता हैं.

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ओफ्फोह कितनी ख़ामोशी है वहां – वहां नहीं जायेंगे यह फरमान किसी के घर या किसी जगह के बारे में जरूर जारी किया होगा. आज इतना शोर बरपा हैं चारों तरफ की उसी ख़ामोशी के लिए तरसते हैं.

तुम छोटे लग रहे हो – सुनना कैसा नागवार गुजरता था 13-14 साल की उम्र में लड़कों को जैकेट ब्लेजर  या लड़कियों का साड़ी पहनकर खुद को बड़ा साबित करना याद ही होगा. आज आपकी उम्र का पता ही नहीं चलता सुनना कितना भाता हैं.

 वो लैंडलाइन फ़ोन – जिसका घर पर ही छुटा रहना आज कितना याद आता है, जब पास पड़ा सेलफोन लगातार पुकारता है पुराने गाने कितने बोरिंग लगते थे, आज उनकी मधुरता की पहचान होने लगी.

फेहरिस्त और लंबी हो सकती है शुरू हमने कर दी है , आप अपनी चर्चाओं में जारी रखिये...





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