Monday, 5 June 2017

गरीब छात्रों को IIT तक पहुँचाने वाले Super 30 फाउंडर आनंद कुमार की दास्तान..

Anand Kumar Super 30 Success Story..



आप में से ज्यादातर लोगों ने life में कभी न कभी कोई coaching classes ज़रूर attend की होगी। और कुछ ने IIT और अन्य engineering colleges के लिए भी तैयारी की होगी। आप लकी थे कि आपके parents coaching की भारी भरकम fees afford कर पाए, लेकिन भारत में ऐसे करोड़ों बच्चे हैं जिनके माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग में नहीं भेज पाते। और ऐसे ही कुछ प्रतिभाशाली बच्चों के लिए बिहार का एक शख्श अँधेरे में रौशनी की किरण का काम करता है।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं Super 30 के संस्थापक आनन्द कुमार जी के बारे में जो बिना एक पैसे शुल्क लिए गरीब प्रतिभाशाली बच्चों का IIT जाने का सपना साकार करते हैं। आइये जानते हैं उनकी कहानी।

क्या है Super 30?

Super 30 आनंद जी का स्टार्ट किया हुआ एक प्रोग्राम है जिसके अंतर्गत वे हर साल पूरे बिहार* से ३० ऐसे बच्चों को चुनते हैं जो प्रतिभाशाली हैं पर साथ ही इतने गरीब हैं कि उनके माता-पिता उनको ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं सकते। आनंद जी एक परीक्षा के माध्यम से ऐसे बच्चों का चयन कर अपने साथ रखते हैं और उनकी पढाई-लिखाई से लेकर खाना-पीना रहना…हर एक चीज का खर्च खुद उठाते हैं।

इस काम में उन्हें अपने छोटे भाई Pranav और अपनी माँ जयंती देवी, जो बच्चों के लिए खाना बनाती हैं, से मदद मिलती है। गणित विषय आनंद जी खुद ही पढ़ाते हैं जबकि फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ाने के लिए उन्हें पुराने छात्रों से मदद मिल जाती है।

पटना में 2002 में शुरू हुए इस प्रोग्राम के अंतर्गत हर साल 28-30 बच्चे IIT में चयनित होते हैं। IIT में प्रवेश पाना कितना कठिन है ये हम सब जानते हैं बावजूद इसके हर साल लगभग 100% रिजल्ट देना सचमुच किसी चमत्कार से कम नहीं है और अब तो पूरी दुनिया भी इस चमत्कार को  acknowledge करती है।

Time Magazine ने आनंद कुमार जी की Super 30 classes को Asia के best school की list में शामिल किया है और Discovery channel भी उनके इस unique initiative पर documentary बना चुकी है।

अब वे अन्य राज्यों से भी बच्चों को लेने लगे हैं और साथ ही उनकी 30 से अधिक छात्रों को लेने की मंशा है।

आनंद कुमार का छात्र जीवन और संघर्ष

Super 30 के संस्थापक आनंद कुमार जी का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा । इनका जन्म 1 January 1973 को पटना में हुआ था। इनके पिता डाक विभाग में क्लर्क थे । पिता की तनख्वाह में घर का खर्च किसी तरह से तो चल जा रहा था लेकिन इतनी income नहीं थी कि आनन्द का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में करा सके ।

इनकी स्कूली शिक्षा की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई । Talent के धनी आनन्द जी का मनपसन्द subject Math था । लेकिन इनका talent आर्थिक तंगी के बोझ तले दब जा रहा था । पिताजी की मृत्यु के बाद घर चलाने के लिए माताजी पापड़ बनाती और आनंद साइकल पर सवार हो झोले में पापड़ रख जगह-जगह पहुंचाने और बेचने का काम करने लगे। कई बार जब पापड़ नहीं बिकते तो परिवार के पास खाने के भी पैसे नहीं हो पाते और सभी को भूखे पेट सोना पड़ता।

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जब एक बार उनसे “गरीबी” के बारे में बताने के लिए कहा गया तो वे बोले-

गरीबी कोई बताने की चीज नहीं है ये महसूस करने की चीज है…अगर गरीबी को महसूस करना है तो एक-दो दिन भूखे रह कर देखो….

आनंद चाहते तो पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी जगह पर उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती थी…पर बचपन से ही Maths teacher बनने का सपना देखने वाले आनंद ने सोचा कि अगर वे इस चक्कर में पड़े तो कभी भी उनका सपना पूरा नहीं हो पायेगा और उन्होंने नौकरी नहीं की।

आनंद जी अपने रास्ते में आये काटे को भी काटा नहीं फूल समझे और उनकी यही विशेषता उनका संबल बनता गया । अपने इसी संबल की वजह से 1994 में इन्हें Cambridge University में जाने का मौका मिला पर गरीबी के कारण उनका ये सपना टूट गया।

इसके बावजूद आनन्द जी ने हार नहीं मानी, वे दिन के समय Mathematics पर काम करते थे और शाम के समय अपनी माँ के पापड़ बेचने के व्यवसाय में मदद करते थे । इसके अलावा अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए Tuition भी पढ़ाते थे । उस समय Patna University में Maths के foreign journals उपलब्ध नहीं थे इसलिए आनन्द जी सप्ताह के अंत में 6 घंटे का ट्रेन द्वारा सफर करके वाराणसी जाते थे और BHU की Central Library में Maths के foreign journals पढ़ते थे और सोमवार सुबह पटना लौट जाते थे ।

पढ़ाने की शुरुआत

1992 में आनन्द जी Mathematics की कोचिंग शुरू की और अपने institute का नाम रखा Ramanujan School of Mathematics. उनके पढ़ाने का style और विषय पर पकड़ इतनी अच्छी थी कि कुछ ही समय के अंदर उनकी ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी। कुछ छात्रों से शुरू हुई coaching बढ़ते बढ़ते 500 छात्रों तक पहुँच गयी।

Super 30 की शुरुआत और उसके पीछे की प्रेरणा

आनंद जी स्वयं एक प्रतिभाशाली छात्र थे औ इसी के बल पर उनका चयन दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित Universities में से एक Cambridge University में हो गया था। पर गरीबी के कारण वे खुद वहां जाने का खर्च नहीं उठा सकते थे और समाज से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली…बचपन से गरीबी का दर्द झेल रहे आनंद ने मन ही मन फैसला किया कि वे ऐसे ज़रुरत मंद बच्चों के लिए ज़रूर कुछ करेंगे। और आगे चल कर जब आनंद जी ” Ramanujan School of Mathematics” नाम से एक ट्यूशन सेंटर चला रहे थे तब एक दिन बिहार शरीफ का एक छात्र उनके पास आया और बोला कि,” मेरे पास पैसे नहीं हैं क्या मैं आपसे पढ़ सकता हूँ…मैं बाद में जब बाउजी खेत से आलू उखाड़ेंगे तब पैसे दे दूंगा….”

बच्चे की ये बात आनंद जी के दिल को छू गयी और उसी पल उन्होंने Super 30 की शुरुआत करने का फैसला किया।

 आनन्द जी का मानना है कि-

पढाई – लिखाई का लाभ हम अकेले ही उठाते रहे और दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढाई – लिखाई किस काम की । शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक से अधिक लाभ दूसरों को मिले ।

कैसे उठाते हैं बच्चों के रहने, खाने-पीने इत्यादि का खर्च?

आनंद और उनकी टीम कभी भी Super 30 के लिए कोई donation नहीं लेती बल्कि वे normal tuition classes से होने वाली कमाई को ही इन ज़रुरतमंद बच्चों की आवश्यकताएं पूरी करने में लगाती है।

Free कोचिंग का विरोध!

शायद आप सोचें कि भला कोई इसका विरोध क्यों करेगा….लेकिन आनंद कुमार जी जहाँ एक तरफ फ्री में बच्चों को IIT में प्रवेश दिला रहे थे वहीँ महंगी-महंगी कोचिंग वाले इतने पैसे लेकर भी अच्छा रिजल्ट नहीं दे पा रहे थे। इसलिए पहले आनंद जी को ये सब बंद करने की धमकी मिली और नहीं मानने पर उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। पर फिर भी वो वही करते रहे जो वो करना चाहते थे, सचमुच उनके जज्बे और हिम्मत की दाद देनी होगी।

इस कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

सभी को..पूरी टीम को…खासतौर से इन बच्चों को जो रोज 16-16 घंटे पढाई करते हैं।

Prakash Jha आनंद जी के जीवन पर एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन लक्ष्य सी भटकने के डर से आनंद जी ने ऐसे किसी प्रोजेक्ट के लिए मना कर दिया। हालांकि, उन्होंने “आरक्षण” फिल्म में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को उनका रोल तैयार करने में मदद की थी।

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सरकार से अपील

IITJEE प्रवेश परीक्षा का लेवल बहुत कठिन होता है जिसके लिए कई बार कोचिंग जाना मजबूरी बन जाती है और गरीब छात्र यहाँ मात खा जाते हैं। इसलिए इस परीक्षा का level क्लास 12th के हिसाब से होना चाहिए और स्टूडेंट्स को कम से कम ३ मौके मिलने चाहिए.

जीवन का लक्ष्य

कभी किसी पढने वाले बच्चे की पैसों के चलते पढाई न रुके।

छात्रों और युवाओं के लिए सन्देश
मेहनत करो…निराश मत हो…हमेशा ये सोचो कि लाइफ में अन्धकार आता है…तकलीफें आती हैं…ये part of life है। अँधेरा जितना गहरा होता है…खुश हो कि नयी सुबह उतनी ही करीब है….बस शर्त इतनी है कि “मेहनत करो” मेहनत करोगे तो एक न एक दिन तुम्हारे जीवन में  प्रकाश ज़रूर आएगा।

“बुझी हुई शमा फिर से जल सकती है

भयंकर तूफ़ान से भी कश्ती निकल सकती है

निराश न हो दोस्तों….एक दिन अपनी भी किस्मत बदल सकती है।


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