दिल्ली में वो पैदा हुई, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से उन्होने एमबीए (MBA from Sriram College of Commerce) किया और उसके बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी के लिये काम किया। वो चाहती तो अपनी बढ़िया नौकरी को जारी रख सकती थीं, लेकिन जब उनकी नजर उन गरीब बच्चों पर पड़ी जो कुपोषण (malnutrition) के कारण बीमार रहते थे तो उन्होने अपनी जिंदगी की राह को बदलने का फैसला लिया। उन्होने तय किया कि वो कुछ ऐसा करेंगी जिससे सब्जियों में होने वाले कीटनाशक का इस्तेमाल ना हो और लोगों को ताजी और साफ सब्जियां मिल सकें। इसके लिये कनिका आहूजा (Kanika Ahuja) ने सबसे पहले अपनी नौकरी छोड़ी और उसके बाद हरियाणा के करनाल शहर (Karnal city of Haryana) में जाकर ऐसी सब्जियों को उगाने के लिये रिसर्च की। आज कनिका अपने सगंठन ‘क्लेवर बड’ (Clever Bud) के जरिये लोगों को पॉली हाउस फार्मिंग (Polyhouse Farming) का हुनर सीखा रही हैं। खास बात ये है कि इसके लिये वो मिट्टी की जगह नारियल की जटा का इस्तेमाल करती हैं।
‘क्लेवर बड’ (Clever Bud) की शुरूआत से पहले कनिका ने कुछ वक्त के लिये टीएनएस (TNS) में काम किया जो नेस्ले के लिए मार्केट और रिसर्च का काम करती है। नौकरी के दौरान उनको जब भी वक्त मिलता तो वो अपने माता-पिता के साथ वालंटियर के तौर पर ‘कंजर्व इंडिया’ (Conserve India) नाम के एक संगठन के लिये काम करने के लिए निकल जाती। ये संस्था स्लम, कचरा प्रबंधन (Waste Management) और ऊर्जा कौशल (Energy Efficiency) के क्षेत्र में काम करती है। कनिका ने बताया कि
जब मैं स्लम में कुपोषित बच्चों को देखती थी तो उनकी हालत देखकर काफी दुख होता था, क्योंकि 21वीं सदी में भी उन बच्चों को साफ पानी और अच्छा खाना नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि इन जगहों पर रहने वाले करीब 80 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार (victim of child malnutrition) हैं।
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यही नहीं कनिका ने देखा कि स्लम में रहने वाले लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि यहां पर सब्जी बेचने वाले इनको सड़ी गली सब्जियां महंगे दामों में बेच जाते थे। ये वो सब्जियां थी जिनको उगाने में काफी ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता था। तब उन्होने सोचा कि क्यों ना एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जाये जहां पर ये लोग अपने लिए बिना कीटनाशकों के इस्तेमाल के साफ और पौष्टिक सब्जियां (clean and wholesome vegetables) उगा सकें।
इस तरह कनिका ने अपने आइडिया पर काम करने का फैसला लिया और तय किया वो सब्जियों को उगाने की ट्रेनिंग के लिए हरियाणा के करनाल के इंडो-इस्राइली सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, (Indo_Israeli Centre of Excellence for Vegetables) में जायेंगी। इसके साथ साथ कनिका ने बिना कीटनाशक और बिना मिट्टी के सिर्फ कोकोनट पीट (Coconut Peat) के चूरे से सब्जी उगाने के बारे में इंटरनेट की भी मदद ली। कनिका ने अपनी रिसर्च पूरी करने के बाद बहादुरगढ़ में तीन फैक्ट्रियों की छतों पर 2 साल पहले अपना पहला प्रोजेक्ट शुरू किया।
यहां से सफलता मिलने पर उन्होने सितम्बर, 2016 में अपने सामाजिक उद्यम ‘क्लेवर बड’ (Clever Bud) की स्थापना की। इसके जरिये वो पॉली हाउस फार्मिंग (Polyhouse Farming) करती हैं। पॉली हाउस के जरिये खेती करने के तरीके के बारे में कनिका बताती हैं कि ये एक तरह का ग्रीन हाउस होता है। जहां पर चारों ओर एक प्लास्टिक फिल्म लगाई जाती है। इस वजह से बाहर का वातावरण और पॉली हाउस के अंदर का वातावरण अलग और सुरक्षित रहता है। ये सूरज की अल्ट्रा वायलेट किरणों को पॉली हाउस से बाहर वापस भेज देता है, जबकि अच्छी किरणों को अंदर आने देता है।
इसके बाद पोली बैग में नारियल पीट (Coconut peat), के बुरादे को भरा जाता है। नारियल की जटा को पीस कर नारियल पीट बनाया जाता है। इसके बाद बुरादे में सब्जियों के बीज डाले जाते हैं। वहीं दूसरे पोषक तत्वों (Nutrient) को अलग से डाला जाता है, क्योंकि हर पौधे को अलग-अलग पोषक तत्व की जरूरत होती है। इन पोषक तत्वों में नाइट्रोजन, पोटेशियम और फॉस्फोरस के मिश्रण को इस्तेमाल किया जाता है। इनके इस्तेमाल से ये पौधे आम पौधों की तुलना में 4 से 5 गुणा तेजी से बढ़ते हैं। इस तरह उगाई गई सब्जियों की सबसे बड़ी खूबी ये होती है कि इसमें किसी तरह के कीटनाशकों (insecticide) का इस्तेमाल नहीं किया जाता।Read Also
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कनिका के तैयार किये गये पॉली हाउस में तापमान भी नियंत्रित रहता है। इसलिए गर्मियों में पालक, मेथी जैसी मौसमी सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं। हालांकि कनिका ने उत्तर और दक्षिण भारत के हिसाब से एक कैलेंडर बनाया हुआ है जिसके जरिये पता चल सकता है कि किस मौसम में कौन सी सब्जी उगाई जा सकती है। उनके एक पॉली बैग से एक टमाटर के पेड़ मे 150 टमाटर तक लग जाते हैं। इस समय उनके बनाये 3 पॉली हाउस हरियाणा में, जिसमें से दो बहादुरगढ़ इलाके में और एक मानेसर में है, एक दिल्ली के पंजाबी बाग के स्कूल में काम कर रहा है। इसके अलावा उनका एक पॉली हाउस मदनपुर खादर में भी है। ये खासतौर से वहां के स्लम में रहने वाले लोगों के लिए तैयार किया गया है। जिसकी सारी फंडिंग कॉरपोरेट की सीएसआर पॉलिसी से हुई है।
आज कनिका ‘क्लेवर बड’ (Clever Bud) के जरिये पोषक सब्जियां पैदा करने वाले सिस्टम को बेचने का काम करती हैं। ऐसे में अगर कोई अपने घर की छत के हिसाब से पॉली हाउस तैयार करना चाहता है तो कनिका उनकी मदद करती हैं। पॉली हाउस के एक सिस्टम को बनाने में करीब 20 दिन लगते हैं। इस सिस्टम को तैयार करने के दौरान लोगों को इसके रखरखाव की ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसके बाद वो तैयार पॉली हाउस में कैसे काम किया जाता है इसकी भी जानकारी देती हैं। पॉली हाउस में इस्तेमाल होने वाले नारियल पीट को हर फसल के बाद पॉली बेग से निकालर उसे नरम करना होता है और इस नारियल पीट को 3 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। सबसे छोटा पॉली हाउस 4 सौ वर्ग फीट का होता है और इसकी लागत करीब 1 लाख 20 हजार रुपये आती है। जबकि 800 फीट में बनने वाले पॉली हाउस की कीमत 2लाख 10 हजार रुपये के आसपास होती है। हालांकि 1 एकड़ से ऊपर का पॉली हाउस बनाने पर सरकार से सब्सिडी भी देती है। कनिका को अपने इस सामाजिक उद्यम ‘क्लेवर बड’ को लेकर लोगों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। यही वजह है कि जल्द ही वो नोएडा, भुवनेश्वर और कोटा में इस तरह का पॉली हाउस बनाने जा रही हैं।
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