वो बच्चों को उनके खोए परिवार से मिलवाती है। वो अनाथ बच्चों को रहने के लिए छत देती है और उनकी जिंदगी के अकेलेपन को दूर करके उनकी जिंदगी में स्थिरता लाती है। यूं तो वो तीन बच्चों की मां है लेकिन 111 बच्चे जिन्हें उसने गोद लिया है वो भी उसे मां कहकर पुकारते हैं।
राजस्थान के जयुपर शहर में रहने वाली मनन चतुर्वेदी जो दूसरों के लिए जीती हैं। उनकी जिंदगी का एक ही लक्ष्य है दूसरों के चेहरों पर खुशी लाना। राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी अपने प्रयास से लगभग साढ़े चार सौ खोए बच्चों को उनके परिवारों से मिलवा चुकी है। यही नहीं वो लगभग 110 ऐसे बच्चों का संरक्षण भी कर रही हैं जिनका कोई नहीं है। मनन पेशे से एक फैशन डिजाइनर हैं उन्होंने दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग में कोर्स किया है। इसके अलावा वो पेंटिंग करती हैं, थियेटर में उनकी खासी रुचि है, वो गाना गाती हैं साथ ही कई सामाजिक मुद्दों पर वो शार्ट फिल्में भी बना चुकी हैं।
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दिल्ली में फैशन डिजाइनिंग के कोर्स के दौरान एक बार वे दिल्ली से जयपुर अपने घर जा रही थीं उस दौरान उन्होंने देखा कि जयपुर में सिंधी कैंप के पास एक छोटी सी बच्ची कूड़े के ढेर में कुछ ढूंढ रही थी उस बच्ची के बदन पर बहुत कम कपड़े थे और जो थे वो भी बहुत पुराने व फटे हुए। उस घटना ने मनन को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वे ऐसा क्या काम करें कि उस काम का असर गरीब लोगों पर पड़े। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वे ऐसे कपड़े डिजाइन करेंगी जिसे गरीब बच्चे भी पहन पाएं व वे कपड़े उनकी जरूरत के मुताबिक हों। इस घटना के बाद उन्होंने स्लम बस्तियों में जाना शुरू कर दिया और वहां पर रहने वाले गरीब बच्चों को जो गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते थे उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया।
उन्हें इस दौरान कई ऑफर मिले लंदन से फैशन डिजाइनिंग के लिए स्कॉलरशिप भी मिली लेकिन उन्होंने सब ठुकरा दिया मनन बताती हैं, उस समय मैने अपनी जिंदगी का लक्ष्य तय कर लिया था मैं करियर में आगे तो बढ़ना चाहती थीं लेकिन साथ ही गरीब बच्चों के लिए भी काम करना चाहती थीं और अगर उस समय मैं लंदन चली जाती तो मैं अपने मार्ग से भटक जाती इसलिए मैने निर्णय लिया कि मैं कहीं नहीं जाउंगी वे देश में रहकर ही गरीबों की सेवा करूंगी।
इस दौरान उनकी शादी हो गई और उनकी निजी जिंदगी में कई बदलाव भी आए। लेकिन उन्होंने गरीब बच्चों का साथ नहीं छोड़ा। एक बार कहीं जाते हुए उन्होंने रेलवे स्टेशन पर एक बच्चे को रोते हुए देखा जो बिलकुल अकेला था और लगातार रो रहा था। वो बच्चा अपने माता पिता से अलग हो गया था। मनन ने बच्चे के माता पिता को ढूंढने की काफी कोशिश की, लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद भी उनका कोई पता नहीं चला। फिर मनन उस बच्चे को अपने साथ ले आईं। इस घटने के बाद मनन ने अपने पास ऐसे बच्चों को रखना शुरू कर दिया जो अपने माता पिता से बिछड़ जाते थे। वे उन बच्चों के माता पिता को ढ़ूंढने में हर संभव मदद करती जगह जगह पोस्टर लगवातीं और अपना नंबर देतीं ताकि उनके माता पिता उनसे संपर्क कर सकें। इसी कड़ी में मनन ने साढ़े चार सौ बिछड़े बच्चों को उनके माता पिता से भी मिलवाया।
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मनन ने ‘सुरमन संस्था’ की भी स्थापना की। इस संस्था का मकसद उन बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना था और बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करना था आज यहां पर रहने वाले कई बच्चे कॉलेज जाते हैं मार्शल आर्ट्स सीखते हैं वेबसाइट डिजाइनिंग का काम कर रहे हैं। यहां पर रहने वाले बच्चों की उम्र 19 साल तक है और यहां पर रहने वाले बच्चों में अधिकांश लड़कियां हैं। मनन आज 110 से ज्यादा बच्चों की देखभाल कर रहीं हैं। उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है जिस पर फोन करके आप अनाथ बच्चों की जानकारी दे सकते हैं और फिर मनन की टीम उन बच्चों को अपने यहां ले आती है। आज सुरमन संस्थान में केवल अनाथ बच्चे ही नहीं हैं, यहां अनाथ बच्चों के अलावा विधवा महिलाएं रहती हैं व वो वृद्ध लोग रहते हैं जिनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया है।
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बच्चों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण मनन अब उनके लिए एक बड़ा घर बनवा रही हैं जहां पर 1000 बच्चों के रहने की व्यवस्था हो सके। मनन को किसी भी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिलती वो सारे काम खुद से करती हैं। खर्च चलाने के लिए मनन फैशन डिजाइनिंग के अलावा पेंटिग व थियेटर करती हैं। आज मनन एक मिसाल हैं वो हम सबको सीख देती हैं कि मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं है और हम सबको मिलकर अपने निजी स्वार्थ को भूलकर समाज के लिए काम करना होगा।
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