इंसान को बोलना सीखने में तीन साल लग जाते हैं… लेकिन क्या बोलना है? ये सीखने में पूरी जिदंगी लग जाती है।
हमारे बोलने का तरीका, बात करने का तरीका ही हमारे व्यक्तित्व को दर्शाता है। हम दूसरों से जिस तरीके से बात करते हैं उसी के अनुसार ही हमें सम्मान या ईर्ष्या मिलती हैं। अगर हम दूसरों से मुस्कुरा कर, सोच समझकर, सच्ची तथा उचित भाषा में बात करते हैं तो लोग हमारा सम्मान करेंगे। लेकिन अगर हम लोगों से झल्लाकर, झूठी, घमंड से, घुमा फिर कर या कड़वी भाषा में बात करते हैं तो लोग हमारा अपमान करेंगे। हमें बुरा भला कहेंगे या हमसे झगड़ा करेंगे।
कौआ और कोयल दिखने में तो एक जैसे ही होते हैं, पर जब तक दोनों बोलते नहीं तब तक जानना मुश्किल होता है कि कोयल है या कौआ। अर्थात जब तक कोई बातचीत नहीं करता, बोलता नहीं है जब तक उसकी अच्छाई या बुराई प्रकट नहीं होती। इसलिए अगर बोलना ही है तो कोयल की तरह मीठा बोलिए, कौवे की तरह कड़वा नहीं।
बात करने के तरीके को लेकर मैं आपके सामने दो प्रसंग पेश कर रहा हूँ कृपया इन्हें ध्यान से पढ़ें और समझें।
प्रसंग – 1
“एक व्यक्ति एक ज्योतिषी के पास आपना भविष्य जानने के लिये गया। ज्योतिषी ने उसकी कुण्डली देखकर बताया कि “तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारे सारे रिश्तेदार, घरवाले मर जायेंगे। तुम इस दुनिया में अकेले रह जाओगे।“ उस व्यक्ति को बहुत क्षोभ हुआ, और उसे उस ज्योतिषी पर बहुत क्रोध आया। उसने ज्योतिषी को बहुत भला-बुरा कहा और चला आया।
अब वह व्यक्ति एक दूसरे ज्योतिषी के पास गया। दूसरे ज्योतिषी ने उसकी कुण्डली देखकर कहा – “अरे आपकी उम्र तो बहुत लम्बी है। आप बहुत समय तक जियेंगे। आप अपने नाती, पोतों का भी सुख देखोगे। उनकी शादी भी आपके द्वारा ही की जाएगी।“ ये सुनकर वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न हुआ। उसने ज्योतिषी को पर्याप्त दक्षिणा दी और ख़ुशी ख़ुशी वहाँ से लौटा।
प्रसंग – 2
“एक गाँव में एक स्त्री थी। वह शहद बेचने का काम करती थी। शहद तो वह बेचती ही थी, उसकी वाणी भी शहद जैसी ही मीठी थी। उसके बोलने का, बात करने का तरीका इतना अच्छा था कि उसकी दुकान पर खरीददारों की भीड़ लगी रहती थी। एक ओछी प्रवृति वाले व्यक्ति ने देखा कि शहद बेचने से एक महिला इतना लाभ कमा रही है, तो उसने भी उस दुकान के नजदीक एक दुकान में शहद बेचना शुरू कर दिया।
उस व्यक्ति का स्वभाव बेहद रूखा तथा कठोर था। वह ग्राहकों से हमेशा कड़वे लहजे में तथा झल्लाकर ही बात करता था। जरा जरा सी बात पर झगडा करने लग जाता था। एक दिन एक ग्राहक ने ऐसे ही उस व्यक्ति से पूछ लिया कि शहद मिलावटी तो नहीं। इस बात पर उस व्यक्ति ने भड़ककर ग्राहक को लताड़ते हुए कहा कि जो स्वयं नकली होता है, वही दूसरे के सामान को नकली बताता है और ग्राहक से झगड़ा करने लगा कि उसने उसके शहद को नकली क्यों बताया ? ग्राहक को उसका ये व्यव्हार बहुत बुरा लगा और वह बिना शहद लिये ही वहाँ से लौट गया।
वही ग्राहक फिर उस महिला के पास पहुंचा और वही सवाल पूछ बैठा। महिला ने मुस्कुराते हुए कहा कि जब वह खुद असली है, तो वह नकली शहद क्यों बेचेगी? ग्राहक महिला के जवाब से खुश हुआ और शहद ले गया।”
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पहले प्रसंग में अगर आप देखें तो बात एक ही थी, बस दोनों ज्योतिषियों के कहने के ढंग अलग-अलग थे। एक ने उसी बात को इस तरह से कहा कि व्यक्ति को क्रोध आ गया जबकि दूसरे ने उसी बात को इस ढंग से कहा कि व्यक्ति बहुत खुश होकर लौटा।
दूसरे प्रसंग में आप देखेंगे कि दो लोग एक ही तरह का काम कर रहे हैं लेकिन उनके बोलने का, बात करने का ढंग दोनों को एक दूसरे से अलग करता है जिससे लोग कड़वा बोलने वाले व्यक्ति को नापसंद करते हैं और मीठा तथा मुस्कुराकर बोलने वाली महिला को पसंद करते हैं।
इस तरह के बहुत प्रसंग आपको रोजाना अपने घर में, रिश्तेदारी में, अपने आस पास मिल जायेंगे।
इसी तरह हम अपने बच्चों को भी कभी कभी बेवजह डांट देते हैं, या कभी कभी बच्चों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, या कभी बच्चे किसी परीक्षा में फेल हो गए या उनसे कोई काम बिगड़ गया या कोई गलती हो गयी तो बहुत बुरी तरह से डांटते हैं, या उस बात को लेकर बार बार ताने मारते हैं या किसी और बच्चे से उनकी तुलना करते हुए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, या उनसे बात करना बंद कर देते हैं। जिसका असर ये होता है कि बच्चे मन ही मन में हमसे चिढ़ने लगते हैं, या नफरत करने लगते हैं, या उनकी पढ़ाई पर असर पड़ने लगता है या बच्चे ज्यादातर गुमसुम रहने लगते हैं।
इसी तरह हम अपने बच्चों को भी कभी कभी बेवजह डांट देते हैं, या कभी कभी बच्चों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, या कभी बच्चे किसी परीक्षा में फेल हो गए या उनसे कोई काम बिगड़ गया या कोई गलती हो गयी तो बहुत बुरी तरह से डांटते हैं, या उस बात को लेकर बार बार ताने मारते हैं या किसी और बच्चे से उनकी तुलना करते हुए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, या उनसे बात करना बंद कर देते हैं। जिसका असर ये होता है कि बच्चे मन ही मन में हमसे चिढ़ने लगते हैं, या नफरत करने लगते हैं, या उनकी पढ़ाई पर असर पड़ने लगता है या बच्चे ज्यादातर गुमसुम रहने लगते हैं।Read Also:
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इसी तरह घर में अपने बड़ों से बात करते हुए कभी कभी हम तेज आवाज या आक्रामक भाषा में बात करते हैं जिससे उन्हें मन ही मन बहुत दुःख पहुँचता है। पति या पत्नी गुस्सा होने पर एक दूसरे की पुरानी गलतियों को बार बार दोहराते हैं, ताने मारते हैं या कोई ऐसी बात कह देते हैं जो बहुत ही बुरी लगती है।
दोस्तों, बोले गए शब्द कभी वापस नहीं आते हैं। कड़वे बोल या कड़वी बात तीर की तरह चुभती हैं और हमेशा के लिए घाव दे जाते हैं। कभी कभी लाठी, पत्थरों या चाक़ू से भी इतनी चोट नहीं लगती है जितनी किसी के द्वारा कही गयी बात से लग जाती है।
व्यक्ति का बोलने का ढंग ही, उसके व्यक्तिव को दर्शाता है। किसी के बात करने के तरीके से ही लोग उस व्यक्ति के बारे में जान जाते हैं। इसलिए मनुष्य को सोच-समझकर उतना ही बोलना चाहिए जितना आवश्यक हो और इस ढंग से बोलना चाहिए कि किसी को दुःख ना पहुँचे या आपकी बात पर किसी को गुस्सा ना आ जाये। यदि आप किसी को अच्छा नही कह सकते हों तो आपको किसी को बुरा कहने का भी कोई अधिकार नहीं होता। मजाक में भी आपको ऐसी बात नहीं करनी चाहिये कि किसी को बुरा लगे। अगर आपको किसी को कोई कड़वी बात कहनी ही है तो उसे इस ढंग से कहें कि वो समझ भी जाये और उसे बुरा भी ना लगे।
संत कबीर भी कहते हैं कि,
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।
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