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Monday 5 June 2017

सफल होना है तो Time Table नहीं To Do List बनाएँ!..


अपने school days में मैं अक्सर पढने के लिए Time Table बनाया करता था, I am sure आप भी बनाते रहे होंगे…या अगर अभी आप एक student हैं तो शायद किसी टाइम टेबल को follow करने की कोशिश कर रहे होंगे!

मुझे लगता है पढाई और टाइम टेबल का सम्बन्ध बहुत नेचुरल है….स्कूल में हमें हमेशा कब किस दिन किस subject का period होगा इसके लिए टाइम टेबल बनवाया जाता था…तो शायद हमारे माइंड में जाने अनजाने ये बात बैठ गयी कि पढने के लिए टाइम टेबल ही बनाया जाता है।

और चूँकि यही बात हमारे पेरेंट्स के लिए भी लागू होती है इसलिए वो भी पढने का बस एक ही तरीका जानते थे, और अक्सर उनके मुंह से ये सुनने को मिलता था–

टाइम टेबल बना कर पढो।

और यहीं से हमारे अन्दर Time Table बनाने की habit पड़ जाती है।

खैर बचपन और लड़कपन की बात तो ठीक है, बड़े होने पर भी हम ऐसा ही करते हैं अंतर बस टाइम टेबल में mention किये गए आइटम्स में आ जाता है….पहले जहाँ हम Physics, Chemistry, Maths पढने का समय लिखा करते थे वहीँ अब हम….उठना है…वाक पे जाना है…काम करना है…राशन लाना है… जैसी चीजें लिख देते हैं।

आप सोच सकते हैं कि इसमें बुराई क्या है? टाइम टेबल बना कर काम करना तो अच्छी चीज है!

बिलकुल अच्छी चीज है….अगर वो फॉलो हो पाए, तब!

आपमें से ज्यादातर लोग इस बात से agree करेंगे कि स्कूल डेज में पढने के लिए बनाए गए टाईम टेबल कभी 2-3 दिन से अधिक फॉलो नहीं हो पाते थे…और हम अक्सर एक नया टाइम टेबल बनाया करते थे…isn’t it?

और बड़े होने पर भी more or less ऐसा ही होता है, हम अपना एक रूटीन डिजाईन करते हैं…रोज सुबह पांच बजे उठेंगे…walk पे जायेंगे…and all that…. और बहुत बार तो हम इसे पहले दिन ही नहीं execute कर पाते…और जल्द ही वो रूटीन डस्ट बिन में चला जाता है। क्यों होता है न ऐसा?  🙂

चलिए, अगर ये चीज कुछ लोगों के साथ हो रही होती तो भी हम कह सकते थे कि टाइम टेबल एक effective tool है लेकिन कुछ लोग उसे सही से use नहीं कर पाते….पर यहाँ तो उल्टा ही case है ….इक्का-दुक्का लोग ही टाइम-टेबल के हिसाब से चल पाते हैं, majority flunks.

इसलिए बरसों से चीजों को effectively करने के लिए time table बना कर काम करने का जो approach हमारे दिमाग में बैठा है उसे निकाल दीजिये…और जान लीजिये कि for majority of people

Time Table in itself is an ineffective tool.

Ok, मान लिया कि टाइम टेबल काम नहीं करता…लेकिन सिर्फ ये बता देने से क्या होगा…effective solution तो तब निकेगा जब आप इसका कोई उपाय बताएँ ???

Alright, here is the solution:

To-Do List बनाएं!
Most probably, आपने इस टूल के बारे में सुना होगा,दोस्तों, दुनिया के ज्यादातर सफल लोग To Do List को productivity increase करने के सबसे कारगर टूल के रूप में देखते हैं और लाइफ में सक्सेसफुल होने के लिए इस टूल का यूज करने की सलाह देते हैं.

क्या होती है To-Do List?
To-Do List यानि एक ऐसी लिस्ट जिसमे आप लिखते हैं कि आज आपको क्या-क्या करना है।

For example : एक student की टू-डू लिस्ट हो सकती है:


  • केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है
  • स्कूल जाना है
  • ट्यूशन जाना है
  • क्रिकेट मैच खेलना है
  • ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है
  • Independence Day Speech तैयार करनी है


To-Do List को कैसे यूज किया जाए:

बहुत से लोग To-Do List के बारे में जानते हैं पर वो ये नहीं जानते कि exactly इसे use कैसे किया जाए। टू-डू लिस्ट का सही उपयोग करने के 3 steps हैं:

Step 1) To-Do List बनाएं:

अधिकतर leaders एंड personal development gurus To-Do List को रात में सोने से पहले या सुबह-सुबह उठ कर बनाने की सलाह देते हैं. Personally, मुझे ये काम सुबह करना अच्छा लगता है क्योंकि इसमें किसी निश्चित समय उठने की बाध्यता नहीं रहती, मैं जब सुभ उठ कर थोड़ा सेटल हो जाता हूँ तब लिस्ट तैयार कर लेता हूँ।

To-DO List बनाते समय आप आज के जो काम हैं उन्हें randomly एक diary या छोटे से spiral pad में लिख लें, इसमें ये important नहीं है कि जो ज़रूरी काम है उसे पहले लिखें, बस जो भी माइंड में आये उस काम को नोट कर लें, जैसा कि ऊपर उदाहरण में बताया गया है।

इसे बनाते वक़्त अपनी लिमिट्स को ध्यान में रखें, आप एक दिन में जितने काम निपटा सकते हैं उससे अधिक काम ना मेंशन करें।

एक बात और…. टू-डू लिस्ट बनाने का मतलब सिर्फ वो पढना-लिखना और serious टाइप वाले काम की planning करना नहीं है, इसमें आप movie देखना, शौपिंग पे जाना, बच्चे को पार्क घुमाना जैसे light activities को भी लिखें, क्योंकि ultimately हर वो काम जो आपका समय ले रहा है उसे effectively और timely manner में पूरा करना बनता है।

Step 2) TO Do list के items के against उसे करने में लगने वाला time लिख लें:

ऐसा करने से पहले आपको इस बात का fair idea होना चाहिये कि actually आज आपके पास कितने time पे control है, और उसी दायरे में रह कर प्लानिंग करनी चाहिए।

For instance, on a typical day, आप जानते हैं कि स्कूल / office और डेली रूटीन एक्टिविटीज; जैसे खाना-पीना-सोना के बाद आपके पास 10 घंटे बचते हैं तो आपको इसी हिसाब से प्लान करना चाहिए कि आपकी टू-डू लिस्ट में इससे अधिक काम ना लिखें जाएं जिन्हें करने में कुल 10 घंटे से अधिक का समय लगे।

Ok, अब हम ऊपर वाली लिस्ट लेते हैं और उन tasks के सामने उन्हें पूरा करने में लगने वाला टाइम लिखते हैं:


  • केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है ———————–1 hr
  • स्कूल जाना है ——————————————8 hrs
  • ट्यूशन जाना है —————————————–1.5 hrs
  • क्रिकेट मैच खेलना है ———————————–1.5 hrs
  • ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है ————————-1 hrs
  • Independence Day Speech तैयार करनी है———-3 hrs


इसमें स्कूल जाना और tuition पढने का टाइम आपके कण्ट्रोल में नहीं है, यानि आपके साढ़े नौ घंटे तो इसमें गए…बाकी 6 घंटे की नींद और एक-आध घंटा miscellaneous task के लिए अलग कर लिए जाएं तो आपके पास बचते हैं : 24 – (9.5+ 6 + 1.5) = 7 hrs.

इसीलिए हमने ऊपर example में school और tuition के अलावा बाकी कामों के लिए कुल 6.5 hrs का provision रखा है।

इस एक्सरसाइज में आप टाइम अलोकेशन में जान बूझ कर जितना टाइम लगे उससे कुछ अधिक टाइम अलोकेट करिए…क्योंकि very often हम जितना सोचते हैं उससे अधिक टाइम लगता है।

और साथ ही आप primary task को करने में लगने वाले supporting tasks का भी टाइम ध्यान में रखिये. For example: स्कूल तो 6 घंटे का है, लेकिन उसके लिए तैयार होना और आने जाने में लगने वाला टाइम भी consider करना होगा। इसलिए मैंने उसके लिए 8 आवर्स का टाइम दिया है।

जब आप practically ये लिस्ट बनायेंगे तो हो सकता है कि लिस्टेड टास्कस को पूरा करने में लगने वाला समय आपके पास मौजूद कुल समय से अधिक हो। ऐसा होने पर आप least priority वाले tasks को लिस्ट से हटा दें और बाकियों पे फोकस करें।

Step 3: आज की प्लानिंग करें – कितने बजे क्या करना है ये तय करें:

अब आपके पास To-Do List के tasks भी हैं और आपको ये भी पता है कि कोई particular task करने में कुल कितना समय लगने वाला है। अब आपको इसी हिसाब से अपना प्लान बनाना है कि जिस काम में जितना वक्त लगना है उसे उतना वक़्त दिया जा सके।

यहाँ पर आपको एक चीज और तय करनी होगी, वो ये कि — आज इन लिस्टेड टास्कस में से आपका MIT क्या है? यानि आपका आज का Most Important Task क्या है?

इसे आप ऐसे तय करें- आप ये सोचें कि अगर आप इन सब कामों मे से बस कोई एक ही काम कर सकते तो वो क्या होता? और फिर उसी काम को सबसे पहले कम्पलीट करने की कोशिश करें। Of course, इसमें आप स्कूल या ऑफिस जाने के काम को नहीं टाल सकते लेकिन जो समय आपके कण्ट्रोल में है उसमे आपको इसे ही priority देनी चाहिए।

Friends, MIT का ख़त्म होना एक बहुत बड़ा मोराल बूस्टर होता है। अगर आज आप अपना वो most important task कर लेते हैं तो probably आज दुनिया के 99% लोगों से अधिक productive हो चुके होते हैं। और ये accomplishment आपको एक feel good factor देने के साथ-साथ आपका confidence और satisfaction level भी बढ़ा देता है।

इसलिए, कोशिश यही करिए कि आपका आज का जो सबसे ज़रूरी काम है वो और कामो से पहले पूरा हो जाए।

For example: अगर हम ऊपर की तो डू लिस्ट में इंडिपेंडेंस डे स्पीच तैयार करना सबसे ज़रूरी काम है, तो हम उसे ही अपने Today’s Plan में priority दें।

तो हमारी टुडू लिस्ट थी:


  • केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है ———————–1 hr
  • स्कूल जाना है ——————————————8 hrs
  • ट्यूशन जाना है —————————————–1.5 hrs
  • क्रिकेट मैच खेलना है ———————————–1.5 hrs
  • ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है ————————-1 hrs
  • Independence Day Speech तैयार करनी है———-3 hrs


इसलिए हमारा प्लान कुछ ऐसा होगा:

Plan For The Day :

  • 6:00 am – 7:00 am Start working on Independence Day Speech, collect the matter, etc
  • 7:00am- 3:00pm School
  • 3:30pm-5:30pm Complete the speech
  • 5:30pm-6:00pm Sports
  • 6:15pm-7:30 Home tuition
  • 8:00-9:00- Chemistry assignment
  • 10:00-11:00 Human anatomy


Some Other Productivity Tips Related to To Do :


  • अपनी टू-डू लिस्ट हमेशा साथ लेकर चलें।
  • सबसे ज़रूरी काम करते समय मोबाइल साइलेंट कर दें।
  • अगर नेट का काम ना हो तो उसे भी ऑफ कर दें।
  • अगर आप लैपटॉप पे काम कर रहे हैं तो काम वाली विंडो के आलावा बाकी सभी विंडो क्लोज कर दें।
  • तत्काल ईमेल की ज़रूरत न हो तो उसे भी क्लोज कर दें।
  • काम में लगने वाली चीजों को एक ही बार सोच कर इकठ्ठा कर लें, ताकि बार-बार उठना न पड़े।
  • रूम में पर्याप्त रौशनी रखें।
  • जहाँ तक हो सके एकांत में बैठ कर काम करें।
  • बोरियत होने पर २-४ मिनट का ब्रेक ले लें।
  • चाहें तो, खाने-पीने, नहाने-धोने जैसे ज़रूरी काम को भी आप टू-डू लिस्ट में लिख सकते हैं और उनके लिए specific टाइम अलोकेट कर सकते हैं, I do like this.

अगर हमारा कोई टास्क छूट जाता है तो?

तो कोई बात नहीं। CEOs से लेकर आम इंसान तक जो टू डू लिस्ट बना कर काम करते हैं सबके टास्क कभी न कभी छूटते ही हैं। जो टास्क रह जाए उसे नेक्स्ट डे के प्लान में इनक्लूड करें और पूर करने की कोशिश करें।

अगर MIT भी पूरा नही हो पाता है तो?

This is very much possible, खासतौर से अगर आप कोई ऐसा काम कर रहे हैं जो आपने पहले कभी नहीं किया। मैं भी कई बार किसी काम के लिए जो time allocate करता हूँ उससे कहीं अधिक समय उसे पूरा करने में लग जाता है। MIT पूरा करना आपकी टॉप priority होनी चाहिए, इसलिए अगर वो उसके लिए allocate किये गए टाइम में नहीं हो पाता है तो आपको अपने बाकी के काम को टाल कर इसे ही पूरा करना चाहिए और अगर फिर भी ये ना हो पाए तो अगले दिन जल्दी से जल्दी इसे पूरा करना चाहिए।

अगर इस टूल से भी मेरी प्रोडक्टिविटी नहीं इम्प्रूव हुई तो?

अगर आप ठीक से इस टूल को follow करेंगे तो ऐसा होना possible ही नहीं है। तो इसका ये मतलब हुआ कि आप टूल को ठीक से यूज नहीं कर रहे और ये कहीं न कहीं आपके लैक ऑफ़ सेल्फ डिसिप्लिन की और इशारा करता है। ऐसे में आपको अपनी लाइफ के बारे में सीरियसली सोचना चाहिए

दोस्तों, माना जाता है कि टू डू लिस्ट बनाने में लगाया गया 1 मिनट आपके 15 मिनट बचाता है इसलिए इस काम को तसल्ली से करिए और एक doable practical plan बना कर अपना दिन productive बनाइये।

मैंने experience किया है कि जब भी मैं टू-डू लिस्ट नहीं बनाता मेरा बहुत सारा समय इसी में चला जाता है कि ये करें कि वो करें…और बहुत अधिक टाइम वेस्ट हो जाता है। To-Do List बनाने से mind एक तरह से set हो जाता है कि हाँ, आज ये-ये काम करने हैं…और फिर दिमाग दुनिया भर के अनगिनत कामों के बारे में नहीं सोचता। जिसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि आपके व काम पूरे हो जाते हैं जो वाकई ज़रूरी हैं। यकीन जानिये, रोज To-Do List बनाने में लगने वाला 15 मिनट समय आपकी productivity को कई गुना बढ़ा सकता है और आपके साथ-साथ कई लोगों की ज़िन्दगी बदल सकता है। इसलिए आज से ही इसे अपनी लाइफ का हिस्सा बना लें और सफलता की डगर पर अपने कदम बढ़ा दें!

All the best!


गरीब छात्रों को IIT तक पहुँचाने वाले Super 30 फाउंडर आनंद कुमार की दास्तान..

Anand Kumar Super 30 Success Story..



आप में से ज्यादातर लोगों ने life में कभी न कभी कोई coaching classes ज़रूर attend की होगी। और कुछ ने IIT और अन्य engineering colleges के लिए भी तैयारी की होगी। आप लकी थे कि आपके parents coaching की भारी भरकम fees afford कर पाए, लेकिन भारत में ऐसे करोड़ों बच्चे हैं जिनके माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग में नहीं भेज पाते। और ऐसे ही कुछ प्रतिभाशाली बच्चों के लिए बिहार का एक शख्श अँधेरे में रौशनी की किरण का काम करता है।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं Super 30 के संस्थापक आनन्द कुमार जी के बारे में जो बिना एक पैसे शुल्क लिए गरीब प्रतिभाशाली बच्चों का IIT जाने का सपना साकार करते हैं। आइये जानते हैं उनकी कहानी।

क्या है Super 30?

Super 30 आनंद जी का स्टार्ट किया हुआ एक प्रोग्राम है जिसके अंतर्गत वे हर साल पूरे बिहार* से ३० ऐसे बच्चों को चुनते हैं जो प्रतिभाशाली हैं पर साथ ही इतने गरीब हैं कि उनके माता-पिता उनको ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं सकते। आनंद जी एक परीक्षा के माध्यम से ऐसे बच्चों का चयन कर अपने साथ रखते हैं और उनकी पढाई-लिखाई से लेकर खाना-पीना रहना…हर एक चीज का खर्च खुद उठाते हैं।

इस काम में उन्हें अपने छोटे भाई Pranav और अपनी माँ जयंती देवी, जो बच्चों के लिए खाना बनाती हैं, से मदद मिलती है। गणित विषय आनंद जी खुद ही पढ़ाते हैं जबकि फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ाने के लिए उन्हें पुराने छात्रों से मदद मिल जाती है।

पटना में 2002 में शुरू हुए इस प्रोग्राम के अंतर्गत हर साल 28-30 बच्चे IIT में चयनित होते हैं। IIT में प्रवेश पाना कितना कठिन है ये हम सब जानते हैं बावजूद इसके हर साल लगभग 100% रिजल्ट देना सचमुच किसी चमत्कार से कम नहीं है और अब तो पूरी दुनिया भी इस चमत्कार को  acknowledge करती है।

Time Magazine ने आनंद कुमार जी की Super 30 classes को Asia के best school की list में शामिल किया है और Discovery channel भी उनके इस unique initiative पर documentary बना चुकी है।

अब वे अन्य राज्यों से भी बच्चों को लेने लगे हैं और साथ ही उनकी 30 से अधिक छात्रों को लेने की मंशा है।

आनंद कुमार का छात्र जीवन और संघर्ष

Super 30 के संस्थापक आनंद कुमार जी का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा । इनका जन्म 1 January 1973 को पटना में हुआ था। इनके पिता डाक विभाग में क्लर्क थे । पिता की तनख्वाह में घर का खर्च किसी तरह से तो चल जा रहा था लेकिन इतनी income नहीं थी कि आनन्द का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में करा सके ।

इनकी स्कूली शिक्षा की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई । Talent के धनी आनन्द जी का मनपसन्द subject Math था । लेकिन इनका talent आर्थिक तंगी के बोझ तले दब जा रहा था । पिताजी की मृत्यु के बाद घर चलाने के लिए माताजी पापड़ बनाती और आनंद साइकल पर सवार हो झोले में पापड़ रख जगह-जगह पहुंचाने और बेचने का काम करने लगे। कई बार जब पापड़ नहीं बिकते तो परिवार के पास खाने के भी पैसे नहीं हो पाते और सभी को भूखे पेट सोना पड़ता।

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जब एक बार उनसे “गरीबी” के बारे में बताने के लिए कहा गया तो वे बोले-

गरीबी कोई बताने की चीज नहीं है ये महसूस करने की चीज है…अगर गरीबी को महसूस करना है तो एक-दो दिन भूखे रह कर देखो….

आनंद चाहते तो पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी जगह पर उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती थी…पर बचपन से ही Maths teacher बनने का सपना देखने वाले आनंद ने सोचा कि अगर वे इस चक्कर में पड़े तो कभी भी उनका सपना पूरा नहीं हो पायेगा और उन्होंने नौकरी नहीं की।

आनंद जी अपने रास्ते में आये काटे को भी काटा नहीं फूल समझे और उनकी यही विशेषता उनका संबल बनता गया । अपने इसी संबल की वजह से 1994 में इन्हें Cambridge University में जाने का मौका मिला पर गरीबी के कारण उनका ये सपना टूट गया।

इसके बावजूद आनन्द जी ने हार नहीं मानी, वे दिन के समय Mathematics पर काम करते थे और शाम के समय अपनी माँ के पापड़ बेचने के व्यवसाय में मदद करते थे । इसके अलावा अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए Tuition भी पढ़ाते थे । उस समय Patna University में Maths के foreign journals उपलब्ध नहीं थे इसलिए आनन्द जी सप्ताह के अंत में 6 घंटे का ट्रेन द्वारा सफर करके वाराणसी जाते थे और BHU की Central Library में Maths के foreign journals पढ़ते थे और सोमवार सुबह पटना लौट जाते थे ।

पढ़ाने की शुरुआत

1992 में आनन्द जी Mathematics की कोचिंग शुरू की और अपने institute का नाम रखा Ramanujan School of Mathematics. उनके पढ़ाने का style और विषय पर पकड़ इतनी अच्छी थी कि कुछ ही समय के अंदर उनकी ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी। कुछ छात्रों से शुरू हुई coaching बढ़ते बढ़ते 500 छात्रों तक पहुँच गयी।

Super 30 की शुरुआत और उसके पीछे की प्रेरणा

आनंद जी स्वयं एक प्रतिभाशाली छात्र थे औ इसी के बल पर उनका चयन दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित Universities में से एक Cambridge University में हो गया था। पर गरीबी के कारण वे खुद वहां जाने का खर्च नहीं उठा सकते थे और समाज से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली…बचपन से गरीबी का दर्द झेल रहे आनंद ने मन ही मन फैसला किया कि वे ऐसे ज़रुरत मंद बच्चों के लिए ज़रूर कुछ करेंगे। और आगे चल कर जब आनंद जी ” Ramanujan School of Mathematics” नाम से एक ट्यूशन सेंटर चला रहे थे तब एक दिन बिहार शरीफ का एक छात्र उनके पास आया और बोला कि,” मेरे पास पैसे नहीं हैं क्या मैं आपसे पढ़ सकता हूँ…मैं बाद में जब बाउजी खेत से आलू उखाड़ेंगे तब पैसे दे दूंगा….”

बच्चे की ये बात आनंद जी के दिल को छू गयी और उसी पल उन्होंने Super 30 की शुरुआत करने का फैसला किया।

 आनन्द जी का मानना है कि-

पढाई – लिखाई का लाभ हम अकेले ही उठाते रहे और दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढाई – लिखाई किस काम की । शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक से अधिक लाभ दूसरों को मिले ।

कैसे उठाते हैं बच्चों के रहने, खाने-पीने इत्यादि का खर्च?

आनंद और उनकी टीम कभी भी Super 30 के लिए कोई donation नहीं लेती बल्कि वे normal tuition classes से होने वाली कमाई को ही इन ज़रुरतमंद बच्चों की आवश्यकताएं पूरी करने में लगाती है।

Free कोचिंग का विरोध!

शायद आप सोचें कि भला कोई इसका विरोध क्यों करेगा….लेकिन आनंद कुमार जी जहाँ एक तरफ फ्री में बच्चों को IIT में प्रवेश दिला रहे थे वहीँ महंगी-महंगी कोचिंग वाले इतने पैसे लेकर भी अच्छा रिजल्ट नहीं दे पा रहे थे। इसलिए पहले आनंद जी को ये सब बंद करने की धमकी मिली और नहीं मानने पर उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। पर फिर भी वो वही करते रहे जो वो करना चाहते थे, सचमुच उनके जज्बे और हिम्मत की दाद देनी होगी।

इस कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

सभी को..पूरी टीम को…खासतौर से इन बच्चों को जो रोज 16-16 घंटे पढाई करते हैं।

Prakash Jha आनंद जी के जीवन पर एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन लक्ष्य सी भटकने के डर से आनंद जी ने ऐसे किसी प्रोजेक्ट के लिए मना कर दिया। हालांकि, उन्होंने “आरक्षण” फिल्म में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को उनका रोल तैयार करने में मदद की थी।

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सरकार से अपील

IITJEE प्रवेश परीक्षा का लेवल बहुत कठिन होता है जिसके लिए कई बार कोचिंग जाना मजबूरी बन जाती है और गरीब छात्र यहाँ मात खा जाते हैं। इसलिए इस परीक्षा का level क्लास 12th के हिसाब से होना चाहिए और स्टूडेंट्स को कम से कम ३ मौके मिलने चाहिए.

जीवन का लक्ष्य

कभी किसी पढने वाले बच्चे की पैसों के चलते पढाई न रुके।

छात्रों और युवाओं के लिए सन्देश
मेहनत करो…निराश मत हो…हमेशा ये सोचो कि लाइफ में अन्धकार आता है…तकलीफें आती हैं…ये part of life है। अँधेरा जितना गहरा होता है…खुश हो कि नयी सुबह उतनी ही करीब है….बस शर्त इतनी है कि “मेहनत करो” मेहनत करोगे तो एक न एक दिन तुम्हारे जीवन में  प्रकाश ज़रूर आएगा।

“बुझी हुई शमा फिर से जल सकती है

भयंकर तूफ़ान से भी कश्ती निकल सकती है

निराश न हो दोस्तों….एक दिन अपनी भी किस्मत बदल सकती है।


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शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह..


महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। पंजाब के इस महावीर नें अपने साहस और वीरता के दम पर कई भीषण युद्ध जीते थे। रणजीत सिंह के पिता सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। बचपन में रणजीत सिंह चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे, उसी कारण उनकी बायीं आँख दृष्टिहीन हो गयी थी।

किशोरावस्था से ही चुनौतीयों का सामना करते आये रणजीत सिंह जब केवल 12 वर्ष के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु (वर्ष 1792) हो गयी थी। खेलने -कूदने कीउम्र में ही नन्हें रणजीत सिंह को मिसल का सरदार बना दिया गया था, और उस ज़िम्मेदारी को उन्होने बखूबी निभाया।

महाराजा रणजीत सिंह स्वभाव से अत्यंत सरल व्यक्ति थे। महाराजा की उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद भी रणजीत सिंह अपने दरबारियों के साथ भूमि पर बिराजमान होते थे। वह अपने उदार स्वभाव, न्यायप्रियता ओर समस्त धर्मों के प्रति समानता रखने की उच्च भावना के लिए प्रसिद्द थे। अपनी प्रजा के दुखों और तकलीफों को दूर करने के लिए वह हमेशा कार्यरत रहते थे। अपनी प्रजा की आर्थिक समृद्धि और उनकी रक्षा करना ही मानो उनका धर्म था।

महाराजा रणजीत सिंह नें लगभग 40 वर्ष शासन किया। अपने राज्य को उन्होने इस कदर शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था कि उनके जीते जी  किसी आक्रमणकारी सेना की उनके साम्राज्य की और आँख उठा नें की हिम्मत नहीं होती थी।

महाराजा रणजीत सिंह  के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य /  Maharaja Ranjit Singh Interesting Facts in Hindi 

महा सिंह और राज कौर के पुत्र रणजीत सिंह दस साल की उम्र से ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, एवं अन्य युद्ध कौशल में पारंगत हो गये। नन्ही उम्र में ही रणजीत सिंह अपने पिता महा सिंह के साथ अलग-अलग सैनिक अभियानों में जाने लगे थे।
महाराजा रणजीत सिंह को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, वह अनपढ़ थे।
अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था। हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह नें खुद ही मौत की नींद सुला दिया।
बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों नें रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया।

Maharaja Ranjit Singh का विवाह 16 वर्ष की आयु में महतबा कौर से हुआ था। उनकी सास का नाम सदा कौर था। सदा कौर की सलाह और प्रोत्साहन पा कर रणजीत सिंह नें रामगदिया पर आक्रमण किया था, परंतु उस युद्ध में वह सफलता प्राप्त नहीं कर सके थे।
उनके राज में कभी किसी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया गया था। रणजीत सिंह बड़े ही उदारवादी राजा थे, किसी राज्य को जीत कर भी वह अपने शत्रु को बदले में कुछ ना कुछ जागीर दे दिया करते थे ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके।
वो महाराजा रणजीत सिंह ही थे जिन्होंने हरमंदिर साहिब यानि गोल्डन टेम्पल का जीर्णोधार करवाया था।
उन्होंने कई शादियाँ की, कुछ लोग मानते हैं कि उनकी 20 शादियाँ हुई थीं।
महाराजा रणजीत सिंह न गौ मांस खाते थे ना ही अपने दरबारियों को इसकी आज्ञा देते थे।

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लाहौर पर विजय
1798 ई. – 1799 ई  में अफगानिस्तान के शासक जमानशाह ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया और बड़ी आसानी से उस पर अधिकार कर लिया पर अपने सौतेले भाई महमूद के विरोध के कारण जमानशाह को वापस काबुल लौट जाना ना पड़ा था| काबूल लौटते समय उसकी कुछ तोपें  झेलम नदी में गिर पड़ी थीं| रणजीत सिंह ने इन तोपों को नदी से निकलवा कर सुरक्षित काबुल भिजवा दिया | इस बात पर जमानशाह बहुत प्रसन्न हो गये और उन्होने रणजीत सिंह को लाहौर पर अधिकार कर लेने की अनुमति दे दी | इस के बाद तुरंत ही रणजीत सिंह ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया और 7 जुलाई 1799 के दिन लाहौर पर आधिपत्य जमा लिया |

पंजाब के भिन्न-भिन्न मिसलों पर जीत हासिल की
ई॰ 1803 में अकालगढ़ पर विजय।
ई॰ 1804 में डांग तथा कसूर पर विजय।
ई॰ 1805 में अमृतसर पर विजय।
ई॰ 1809 में गुजरात पर विजय।
महाराजा रणजीत सिंह नें किया सतलज पार के प्रदेशो को अपने आधीन
ई 1806 में दोलाधी गाँव पर किया कब्जा।
ई॰ 1806 में ही लुधियाना पर जीत हासिल की।
ई॰ 1807 में जीरा बदनी और नारायणगढ़ पर जीत हासिल की।
ई॰ 1807 में ही फिरोज़पुर पर विजय प्राप्त की।



अमृतसर की संधि 
महाराज रणजीत सिंह के सैनिक अभियानों से डर कर सतलज पार बसी हुई सिख रियासतों ने अंग्रेजो से संरक्षण देने की प्रार्थना की थी ताकि वह सब बचे रह सकें| तभी उन रियासतों की प्रार्थना पर गर्वनर जनरल लार्ड मिन्टो ने सर चार्ल्स मेटकाफ को रणजीत सिंह से संधि करने हेतु उनके वहाँ भेजा था| पहले तो रणजीतसिंह संधि प्रस्ताव पर सहमत नही हुए परंतु जब लार्ड मिन्टो ने मेटकाफ के साथ आक्टरलोनी के नेतृत्व में एक विशाल सैनिक टुकड़ी भेजी और उन्होंने अंग्रेज़ सैनिक शक्ति की धमकी दी तब रणजीतसिंह को समय की मांग के आगे झुकना पड़ा था।

अंत में चातुर्यपूर्वक महाराजा रणजीत सिंह नें तारीख 25 अप्रैल 1809 ईस्वी के दिन अंग्रेजो से संधि कर ली। इतिहास में यह संधि अमृतसर की संधि कही जाती है।

कांगड़ा पर विजय (ई॰ 1809)
अमरसिंह थापा नें ई॰ 1809 में कांगड़ा पर आक्रमण कर दिया था। उस समय वहाँ संसारचंद्र राजगद्दी पर थे। मुसीबत के समय उस वक्त संसारचंद्र नें रणजीतसिंह से मदद मांगी, तब उन्होने फौरन उनकी मदद के लिए एक विशाल सेना की रवाना कर दी, सिख सेना को सामने आता देख कर ही अमरसिंह थापा की हिम्मत जवाब दे गयी और वह सेना सहित उल्टे पाँव वहाँ से भाग निकले। इस प्रकार कांगड़ा राज्य पर भी रणजीत सिंह का आधिपत्य हो गया।

मुल्तान पर विजय (ई॰ 1818)
उस समय मुल्तान के शासक मुजफ्फरखा थे उन्होने सिख सेना का वीरतापूर्ण सामना किया था पर अंत में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। महाराजा रणजीत सिंह की और से वह युद्ध मिश्र दीवानचंद और खड्गसिंह नें लड़ा था और मुल्तान पर विजय प्राप्त की थी। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह नें ई॰ 1818 में मुल्तान को अपने आधीन कर लिया।

कटक राज्य पर विजय (ई॰ 1813)
वर्ष 1813 में महाराजा रणजीत सिंह ने कूटनीति द्वारा काम लेते हुए कटक राज्य पर भी अधिकार कर लिया था | ऐसा कहा जाता है की उन्होंने कटक राज्य के गर्वनर जहादांद को एक लाख रूपये की राशि भेंट दे कर ई॰ 1813 में कटक पर अधिकार प्राप्त कर लिया था|

कश्मीर पर विजय (ई॰ 1819)
महाराजा रणजीत सिंह नें 1819 ई. में मिश्र दीवानचंद के नेतृत्व मे विशाल सेना कश्मीर की और आक्रमण करने भेजी थी। उस समय कश्मीर में अफगान शासक जब्बार खां का आधिपत्य था। उन्होनें रणजीत सिंह की भेजी हुई सिख सेना का पुरज़ोर मुकाबला किया परन्तु उन्हे पराजय का स्वाद ही चखना पड़ा। अब कश्मीर पर भी रणजीत सिंह का पूर्ण अधिकार हो गया था।

डेराजात की विजय (ई॰ 1820-21)
आगे बढ़ते हुए ई॰ 1820-21 में महाराजा रणजीत सिंह ने क्रमवार डेरागाजी खा, इस्माइलखा और बन्नू पर विजय हासिल कर के अपना अधिकार सिद्ध कर लिया था।

पेशावर की विजय (ई॰ 1823-24)
पेशावर पर जीत हासिल करने हेतु ई॰ 1823. में महाराजा रणजीत सिंह ने वहाँ एक विशाल सेना भेज दी। उस समय सिक्खों ने वहाँ जहांगीर और नौशहरा की लड़ाइयो में पठानों को करारी हार दी और पेशावर राज्य पर जीत प्राप्त कर ली। महाराजा की अगवाई में ई॰ 1834 में पेशावर को पूर्ण सिक्ख साम्राज्य में सम्मलित कर लिया गया।

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लद्दाख की विजय (ई॰ 1836)
ई॰ 1836 में महाराजा रणजीत सिंह के सिक्ख सेनापति जोरावर सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण किया और लद्दाखी सेना को हरा कर के लद्दाख पर आधिपत्य हासिल कर लिया|

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु
भारतीय इतिहास में अपनी जगह बनाने वाले प्रचंड पराक्रमी महाराजा रणजीत सिंह 58 साल की उम्र में सन 1839 में मृत्यु को प्राप्त हुए। उन्होने अपने अंतिम साँसे लाहौर में ली थी। सदियों बाद भी आज उन्हे अपने साहस और पराक्रम के लिए याद किया जाता है। सब से पहली सिख खालसा सेना संगठित करने का श्रेय भी महाराजा रणजीत सिंह को जाता है। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र महराजा खड़क सिंह ने उनकी गद्द्दी संभाली।

कोहिनूर हीरा
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद ई॰ 1845 में अंग्रेजों नें सिखों पर आक्रमण किया। फिरोज़पुर की लड़ाई में सिख सेना के सेनापति लालसिंह नें अपनी सेना के साथ विश्वासघात किया और अपना मोर्चा छोड़ कर लाहौर चला गया। इसी समय में अंग्रेज़ो नें सिखों से कोहिनूर हीरा लूट लिया, और साथ-साथ कश्मीर राज्य और हज़ारा राज्य भी छीन लिया। कोहिनूर हीरा लंदन ले जया गया और वहाँ ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया के ताज में जड्वा दिया गया। ऐसा कहा जाता है की कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन की महारानी के ताज में लगाने से पहले जौहरीयों नें एक माह और आठ दिन तक तराशा था।

विशेष
महाराजा रणजीत सिंह में आदर्श राजा के सभी गुण मौजूद थे- बहादुरी, प्रजा प्रेम, करुणा, सहनशीलता, कुटिलता, चातुर्य और न्यायसंगतता। भारत वर्ष के इस महान तेजवंत शासक को हमारा आदर सहित प्रणाम।




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Nature The Teacher - 5 चीँजे जो हम प्रकृति से सीख सकते है..



Friends  आप सबको प्रकृति  और मनुष्य का क्या relation है ये तो पता ही होगा । पर मै आज आपसे मनुष्य और प्रकृति  के एक अलग ही relationship के बारे मे बात करूँगा। और वो रिलेशन है Teacher और  Student का । जी हाँ , प्रकृति  ही हमारी सबसे बड़ी Teacher है। ये हमे हर पल कुछ न कुछ सीखाती रहती है बस जरूरत है तो थोड़ा ध्यान देने का । आज तक मनुष्य ने जो कुछ भी हासिल किया है वो प्रकृति  से सीख लेकर ही किया है। न्यूटन को gravity का पाठ प्रकृति  ने ही सीखाया है। कई अविष्कार भी प्रकृति  से प्रेरित है। इन सबके अलावा प्रकृति  हमे ऐसे गुण भी सीखाती है जिससे हम अपने जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन ला सकते है और इसे बेहतर बना सकते हैँ। वैसे इसकी List तो बहुत लम्बी हो सकती है पर मै यहाँ ऐसी 5 चीजे ही share कर रहाँ हूँ जो हम प्रकृति  से सीख सकते है:

 1) पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नही :



कभी-कभी हमारे साथ कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे हम बहुत low महसूस करते है। ऐसा लगता है जैसे अब सब कुछ खत्म हो गया इससे कई लोग  depression मे चले जाते है तो कई लोग बड़ा और बेवकूफी भरा कदम उठा लेते है जैसे आत्महत्या पर जरा सोचिये पतझड़ के समय जब पेड़ मे ऐक भी पत्ती नही बचती है तो क्या उस पेड़ का अंत हो जाता है? नही। वो पेड़ हार नही मानता नए जीवन और बहार के आश मे खड़ा रहता है। और जल्द ही उसमे नयी पत्तियाँ आनी शुरू हो जाती है, उसके जीवन मे फिर से बहार आ जाती  है। यही प्रकृति  का नियम है। ठीक ऐसे ही अगर हमारे जीवन मे कुछ ऐसे destructive पल आते है तो इसका मतलब अंत नही बल्की ये इस बात का इशारा है कि हमारे जीवन मे भी नयी बहार आयगी। अत: हमे सबकुछ भूलकर नयी जिन्दगी की शुरूआत करनी चाहिये। और ये विश्वास रखना चाहिए कि नयी जिन्दगी पुरानी से कही बेहतर होगी।

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2) कमल किचड़ मे भी रहकर अपनी अलग पहचान बनाता है :


ये मेरी  favorite line है। यही बात मुझे बुराई के बीच रहकर भी अच्छा करने के लिये प्ररित करती है। जिस तरह कमल कीचड़ मे रहकर  भी अपने अंदर कीचड़ वाले गुण विकसित नही होने देता है उसी तरह चाहे हमारे आस-पास कितनी ही बुराईयाँ हो पर उसे अपने अंदर पनपने नही देना चाहिये। हमे अपना अलग पहचान बनाना चाहिये।

3) नदी का बहाव ऊँचाई से नीचे की ओर होता है : 


जिस तरह से नदी मे पानी का बहाव ऊँचे level से नीचे  level की ओर ही होता है उसी तरह हमारी जिन्दगी मे भी प्रेम भाव का प्रवाह बड़े से छोटे की ओर होता है इसलिये हमे कभी भी अपने आप को दूसरो के सामने ज्ञानवान या बड़ा बताने की जरूरत नही है और इससे कोई फायदा भी तो नही है उल्टा प्रेम भाव हम तक बहकर नही आयेगा।



4) ऊँचे पर्वतों मे आवाज का परावर्तन:


 जब कोई पर्वत की ऊँची चोटी से जोर से आवाज लगाता है तो वही आवाज वापस लौटकर उसी को सुनाई देती है । विज्ञान मे इस घटना को echo कहते है पर यही नियम हमारे जीवन मे भी लागू होता है। हम वही पाते है जो हम दूसरो को देते है। हम जैसा व्यवहार दूसरो के लिये करते है वही हमे वापस मिलता है यदि हम दूसरो का सम्मान करते है तो हमे भी सम्मान मिलेगा। यदि हम दूसरो के बारे मे गलत भाव रखेँगे तो वो वापस हमे ही मिलेगा। अत: आप जैसा भी व्यवहार करे याद रखिये कि वो लौटकर आपको ही मिलने वाला है।

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5) छोटे पौधो के अपेक्षा विशाल पेड़ को तैयार होने मे ज्यादा समय लगता है:



जिस तरह विशाल पेड़ को तैयार होने मे ज्यादा समय लगता है उसी तरह हमारे महान लक्ष्य को भी पूरा होने मे समय लगता है। लेकिन कुछ लोग धैर्य नही रख पाते और अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है। ऐसा करने वाले को बाद मे पछतावा ही मिलता है। So, बड़े लक्ष्य मे सफलता के लिये कड़ी मेहनत के अलावा धैर्य की भी आवश्यकता होती है।

दोस्तों , आइये हम भी प्रकृति से मिली इन सीखों को अपनी लाइफ में follow करें और एक बेहतर दुनिया का निर्माण करें.

All the best.


Failure is simply the opportunity to begin again


रोहित ने बड़े उत्साह के साथ exam की तैयारी शुरू की। लेकिन फिर भी वह टॉप नहीं कर पाया जिसकी वजह से वह बहुत उदास और निराश रहने लगा। वह अपने आपको असफल (failure) महसूस करने लगा इसलिए उसने पहले की तरह प्रयास करना छोड़ दिया।
रोहित की इस परेशानी का पता जब उसके अध्यापक को पता लगा जो उसके मार्गदर्शक थे तो  उन्होंने एक दिन उसे अपने घर बुलाया और पूछा, ‘‘क्या बात है, आजकल तुम काफी उदास और परेशान रहते हो और पहले की तरह तैयारी करना भी छोड़ दी ?’’

 उसने कारण बताया की  ‘उसने दिन रात मेहनत की पर जैसा वो चाहता था वैसे results नहीं आए इसलिए वो हताश हो चुका है

अध्यापक कुछ समय के लिए शांत रहे और  फिर कुछ सोचकर उन्होंने उससे कहा की मेरे पीछे पीछे आओ। वो उसे टमाटर के पोधों के पास ले गए और बोले की इस  टमाटर के इस खराब और मरे हुए पौधे को देखो।

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जब मैंने इस पोधे को  बोया था तो जो जो चीज  इसके लिए सही हो मैंने वो सभी कुछ किया । मैंने इसे समय-समय पर सही मात्रा मे पानी दिया, खाद भी  डाली और  कीटनाशक का छिड़काव भी किया, पर फिर भी यह खराब हो गया।

‘‘तो क्या?’’, रोहित बोला।  इतनी सारी मेहनत, इतना पैसा और समय देने के बाद भी अगर जैसा रिज़ल्ट हम चाहते है वो न मिल पाये तो इतना सब कुछ करने से क्या फायदा है।

अध्यापक बोले ऐसा नहीं है  और उन्होने एक दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा की एक बार जरा इस दरवाजे को खोल कर देखो। रोहित ने दरवाजे को खोला और देखा की  सामने बड़े-बड़े टमाटरों के ढेर पढे हुए थे।  उसने पूछा की ‘‘ये सब कहां से आए?’’,

अध्यापक बोले ‘’ टमाटर के एक  पोधे के खराब होने का मतलब यह नहीं है की सभी के सभी पोधे खराब हो गए। इसी तरह तुमने मेहनत तो की पर टॉप नहीं कर पाये लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की तुम्हारी दिन रात की मेहनत खराब गई और तुम असफल (failure) हो गए ।

तुमने पाया तो बहुत कुछ लेकिन तुम्हें सिर्फ इसका नकरात्मक रिज़ल्ट दिख रहा है और और सकरात्मक पहलू छिपा हुआ है जो सही समय आने पर दिखेगा। exam मे लिखते वक्त कई चीजे माइने रखती है जैसे की लिखने की स्पीड, तबीयत, मनोस्थिति और भी बहुत कुछ जो सिर्फ मेहनत का पैमाना नहीं है। जो तुमने सीखा वो ज़िंदगी के हर मोड पर काम आयेगा ।

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मेहनत करने के बावजूद मनचाहा न मिलने का मतलब यह नहीं है की आप असफल हो गए। इसका मतलब है की आपने सफलता तक पहुचने की एक ओर सीढ़ी चढ़ी है।

एडीसन ने जब पहली बार बल्ब बनाया था तो उन्हे भी 10,000 बार मनचाहा नहीं मिला था। हैरी पॉटर की लेखिका जे के रौलिंग के मेहनत करने के बावजूद जब उन्होने अपना पहला नॉवेल  लिखा था तो वो भी कई बार रिजैक्ट हुआ था लेकिन उन्होने मेहनत करना नहीं छोड़ा। ऐसे और भी हजारो उदहारण मिल जाएंगे।

अगर ये सब भी अपने आपको एक failure समझते तो कभी आगे नहीं बड़ पाते।  निराश होने की जगह ये सोचो की तुमसे कहा कहा चूक हुई है और उसे सुधारने की कोशिश करो। ये बात हम सब पर लागू होती जो कुछ करना चाहते है लेकिन जैसे ही कुछ मनचाह नहीं मिलता उसमे सुधार करने की बजाय काम करना छोड़ देते है।

जब रेस लंबी हो तो ये मायने नहीं रहता की कोन कितनी तेज दोड़ रहा है मायने यह रखता है की कौन कितनी ज्यादा देर तक दोड़ सकता है।

रोहित अब सफलता का पाठ पढ़ चुका था। वह अच्छी तरह से समझ चुका कि उसे अब आगे  क्या करना है और वह एक नई आशा और उमंग  के साथ बाहर निकल पड़ा है और आप?

FAILURE IS SIMPLY THE OPPORTUNITY TO BEGIN AGAIN, THIS TIME MORE INTELLIGENTLY – हेनरी फोर्ड

विफलता बस फिर से शुरू करने का अवसर है, इस बार और अधिक समझदारी से – हेनरी फोर्ड



Tension का ग्लास


एक दिन की बात है जब एक मनोवैज्ञानिक अध्यापक छात्रो को तनाव से निपटने के लिए उपाय बताता है। वह पानी का ग्लास उठाता है। सभी छात्र यह सोचते है की वह यह पूछेगा की ग्लास आधा खाली है या आधा भरा हुआ। लेकिन अध्यापक महोदय ने इसकी जगह एक दूसरा प्रश्न उनसे पूछा ”जो पानी से भरा हुआ ग्लास मैंने पकड़ा हुआ है यह कितना भारी है?”

छात्रो ने उत्तर देना शुरू किया। कुछ ने कहा थोड़ा सा तो कुछ ने कहा शायद आधा लिटर, कुछ ने कहा शायद 1 लिटर ।




अध्यापक ने कहा मेरे नजर मे इस ग्लास का कितना भार है यह मायने नहीं रखता। बल्कि यह मायने रखता है की इस ग्लास को कितनी देर मै पकड़े रखता हूँ। अगर मै इसे एक या दो मिनट पकड़े रखता हूँ तो यह हल्का लगेगा, अगर मै इसे एक घंटे पकड़े रखूँगा तो इसके भार से मेरे हाथ मे थोड़ा सा दर्द होगा, अगर मै इसे पूरे दिन पकड़ा रखूँगा तो मेरे हाथ एकदम सुन्न पड़ जाएँगे और पानी का यही ग्लास जो शुरुआत मे हल्का लग रहा था उसका भर इतना बाद जाएगा की अब ग्लास हाथ से छूटने लगेगा। तीनों ही दशाओ मे पानी के ग्लास का भार नहीं बदलेगा लेकिन जितना ज्यादा मै इसे पकड़े रखूँगा उतना ज्यादा मुझे इसके भारीपन का एहसास होता रहेगा।


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मनोवैज्ञानिक अध्यापक ने आगे बच्चो से कहा ”आपके जीवन की चिंताए (tension) और तनाव(stress) काफी हद तक इस पानी के ग्लास की तरह है। इन्हे थोड़े समय के लिए सोचो तो कुछ नहीं होता, इन्हे थोड़े ज्यादा समय के लिए सोचो तो इससे थोड़ा सरदर्द का एहसास होना शुरू हो जाएगा, इन्हे पूरा दिन सोचोगे तो आपका दिमाग सुन्न और गतिहीन पड़ जाएगा ”
कोई भी घटना या परिणाम हमारे हाथो मे नहीं है लेकिन हम उसे किस तरह handle करते है ये सब हमारे हाथो मे ही है। बस जरूरत है इस बात को सही से समझने की।

आप अपनी चिंताए (tension) छोड़ दे, जितनी देर आप tension अपने पास रखोगे उतना ही इसके भार का एहसास बढ़ता जाएगा। यही चिंता बाद मे तनाव का कारण बन जाएगी और नयी परेशानिया पैदा हो जाएंगी।


सुबह से शाम तक काम करने पर इंसान उतना नहीं थकता जितना चिंता करने से पल भर मे थक जाता है


अंत मे हमेशा एक बात याद रखें


चिंता (tension) और तनाव (stress) उन पक्षियो की तरह है जिन्हे आप अपने आसपास उड़ने से नहीं रोक सकते लेकिन उन्हे अपने मन मे घोसला बनाने से तो रोक ही सकते है




5 Fact For Self Development - 5 बाते स्वयं का विकास करने के लिए


कुछ दीन पहिले, हमने काम की क्षमता को बढाने के रास्तो को ढूंड निकाला, इसमें एक बात बहोत जरुरी है की काम खत्म होने के बाद आप रोज अपने द्वारा किये काम का पुनःपरिक्षण (Review) करे, और तभी आप स्वयं का विकास – Self Development कर पाओगे.

लेकिन आप पुनःपरिक्षण कैसे करोगे? आप अपने आप को क्या पुछोंगे?

डरने की कोई बात नही! यहाँ 5 प्रश्न दिए गये है, जो आप अपना काम का दिन खत्म होने के बाद अपने आप को पूछे…

1. क्या मैंने आज अपना लक्ष्य प्राप्त किया ?

याद रखिये आपके पास एक लम्बा दिन जरुर हो सकता है लेकिन एक लम्बा जीवन नही. आपको निश्चित घंटो में ही अपने काम को बाटना होता है? और तभी आप उसे समय रहते पूरा कर पाओगे!

बिना किसी शक के अपने लक्ष्य को निर्धारित करना ही आपके दिन का सबसे महत्वपूर्ण काम होना चाहिये.

ऐसा करने से रोज़ आपको प्रेरणा मिलती रहेंगी और धीरे-धीरे आप बड़े-बड़े लक्ष को प्राप्त करने में ध्यान लगा सकोंगे.

इसीलिए अपने कार्यकाल की शुरुवात करने से पहले अपने आप से पूछिये की आज आपको क्या-क्या हासिल करना है. मै वादा करता हु की आप जो निर्धारित करोंगे, दिन के अंत में वही पाओगे.

2. मै कहा गलती कर रहा हु ?

यदि पिछले प्रश्न का उत्तर नही है तो यह प्रश्न आपके लिए तार्किक होंगा.

लेकिन आपके लिए अपने आप से ये पूछना जरुरी होंगा की, आपने क्या गलत किया है?

हो सकता है मीटिंग के समय आपके द्वारा उपयोग किये गये शब्द उचित न हो.
हो सकता है की आपने कुछ ऐसा किया हो जो आपके बॉस या क्लाइंट को पसंद न हो.
हो सकता है की आप अपने सहकर्मी को किसी जानकारी की पर्ची देना भूल गये हो, जिसे उन्हें जानना जरुरी था.
ये कहना गलत होंगा की इसकी आपको जरुरत नही. आपको अपनी गलतियों के प्रति सहज होना चाहिये. आसानी से उसे अपनाये और उनमे सुधार करे.

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3. मै अपनी गलतियों से क्या सीखता हु? या मैंने अपनी गलतियों से क्या सिखा ?

यदि आप अपनी गलतियों से कुछ सीखते हो तो कोई भी गलती बेकार नही होती.

यदि आप ऐसा करोगे तो कोई भी गलती आपसे बार-बार नही होंगी. और आपके दिमाग में हमेशा नए-नए उपाय आते जायेंगे.

इसीलिए अपने दिन को खत्म करने से पहले ही अपने अगले दिन की तयारी कर ले. भूतकाल का विचार करे और सोचे की आपने अपनी गलतियों से क्या-क्या सिखा है.

क्योकि आपकी यही सोच आपको आगे बढ़ने में सहायता करेंगी.

4. मुझे क्या प्रेरित करता है ?

कई बार आप जो चाहते हो उसे आसानी से हासिल कर ही लेते हो. कभी-कभी एक ख़राब दिन गुजारे बिना ही आप सफल हो जाते हो.

आप अपने पिछले दिन को याद करिये और अपने आप से पूछिये ऐसी कोंसी चीज़ है जो आपको लगातार आगे बढ़ने में मदद करती है?

अपने आप को उस दिन में ले जाइये जिस दिन आपको असफलता प्राप्त हुई थी. क्यू की ऐसा करने से ही आप अहंकार से दूर रहोंगे और जमीन पर रहोंगे!!!!!!

5. किस बात के लिए मुझे शुक्रियादा करना चाहिये ?

इस प्रश्न को पूछे बिना कभी अपने दिन को खत्म ना करे.

अपने जीवन में होने वाली घटनाओ को आसानी से अपनाये.

उन दिनों में जाए जब आप मुसीबत में थे और किसी ने आपकी सहायता की थी, उन दिनों के बारे में याद कीजिये.

फिर वो कोई ऑफिस बॉय भी हो सकता है जो आपके लिए कूरियर लेके आता हो, वह कोई कैंटीन बॉय भी हो सकता है जो आपको चाय पिलाता हो या फिर वो आपका बॉस भी हो सकता है जो मुश्किलों में आपको प्रेरित करता हो.

अपने सहकर्मियों का हमेशा शुक्रियादा करे, क्यू की कई बार वे सिर्फ आपके सहकर्मी ही नही बल्कि सहयोगी भी बन जाते है. कई बार आपके सहकर्मी आपकी मदद कर के आपके दिल को छू जाते है. ऐसे लोगो को अपने जीवन में कभी भी “थैंक यु” कहना ना भूले.

आपका द्वारा कहा गया एक “थैंक यु”, आपमें बहोत बड़ा बदलाव लाएंगा. और यही आपको दूसरो से अलग बनायेंगा.