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Saturday, 10 June 2017

The Key of Success - Speaks with Smile



इंसान को बोलना सीखने में तीन साल लग जाते हैं… लेकिन क्या बोलना है?  ये सीखने में पूरी जिदंगी लग जाती है।

हमारे बोलने का तरीका, बात करने का तरीका ही हमारे व्यक्तित्व को दर्शाता है। हम दूसरों से जिस तरीके से बात करते हैं उसी के अनुसार ही हमें सम्मान या ईर्ष्या मिलती हैं। अगर हम दूसरों से मुस्कुरा कर, सोच समझकर, सच्ची तथा उचित भाषा में बात करते हैं तो लोग हमारा सम्मान करेंगे। लेकिन अगर हम लोगों से झल्लाकर, झूठी, घमंड से, घुमा फिर कर या कड़वी भाषा में बात करते हैं तो लोग हमारा अपमान करेंगे। हमें बुरा भला कहेंगे या हमसे झगड़ा करेंगे।
कौआ और कोयल दिखने में तो एक जैसे ही होते हैं, पर जब तक दोनों बोलते नहीं तब तक जानना मुश्किल होता है कि कोयल है या कौआ। अर्थात जब तक कोई बातचीत नहीं करता, बोलता नहीं है जब तक उसकी अच्छाई या बुराई प्रकट नहीं होती। इसलिए अगर बोलना ही है तो कोयल की तरह मीठा बोलिए, कौवे की तरह कड़वा नहीं।
बात करने के तरीके को लेकर मैं आपके सामने दो प्रसंग पेश कर रहा हूँ कृपया इन्हें ध्यान से पढ़ें और समझें।

प्रसंग – 1


“एक व्यक्ति एक ज्योतिषी के पास आपना भविष्य जानने के लिये गया। ज्योतिषी ने उसकी कुण्डली देखकर बताया कि “तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारे सारे रिश्तेदार, घरवाले मर जायेंगे। तुम इस दुनिया में अकेले रह जाओगे।“ उस व्यक्ति को बहुत क्षोभ हुआ, और उसे उस ज्योतिषी पर बहुत क्रोध आया। उसने ज्योतिषी को बहुत भला-बुरा कहा और चला आया।

अब वह व्यक्ति एक दूसरे ज्योतिषी के पास गया। दूसरे ज्योतिषी ने उसकी कुण्डली देखकर कहा – “अरे आपकी उम्र तो बहुत लम्बी है। आप बहुत समय तक जियेंगे। आप अपने नाती, पोतों का भी सुख देखोगे। उनकी शादी भी आपके द्वारा ही की जाएगी।“ ये सुनकर वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न हुआ। उसने ज्योतिषी को पर्याप्त दक्षिणा दी और ख़ुशी ख़ुशी वहाँ से लौटा।

प्रसंग – 2


“एक गाँव में एक स्त्री थी। वह शहद बेचने का काम करती थी। शहद तो वह बेचती ही थी, उसकी वाणी भी शहद जैसी ही मीठी थी। उसके बोलने का, बात करने का तरीका इतना अच्छा था कि उसकी दुकान पर खरीददारों की भीड़ लगी रहती थी। एक ओछी प्रवृति वाले व्यक्ति ने देखा कि शहद बेचने से एक महिला इतना लाभ कमा रही है, तो उसने भी उस दुकान के नजदीक एक दुकान में शहद बेचना शुरू कर दिया।

उस व्यक्ति का स्वभाव बेहद रूखा तथा कठोर था। वह ग्राहकों से हमेशा कड़वे लहजे में तथा झल्लाकर ही बात करता था। जरा जरा सी बात पर झगडा करने लग जाता था। एक दिन एक ग्राहक ने ऐसे ही उस व्यक्ति से पूछ लिया कि शहद मिलावटी तो नहीं। इस बात पर उस व्यक्ति ने भड़ककर ग्राहक को लताड़ते हुए कहा कि जो स्वयं नकली होता है, वही दूसरे के सामान को नकली बताता है और ग्राहक से झगड़ा करने लगा कि उसने उसके शहद को नकली क्यों बताया ? ग्राहक को उसका ये व्यव्हार बहुत बुरा लगा और वह बिना शहद लिये ही वहाँ से लौट गया।

वही ग्राहक फिर उस महिला के पास पहुंचा और वही सवाल पूछ बैठा। महिला ने मुस्कुराते हुए कहा कि जब वह खुद असली है, तो वह नकली शहद क्यों बेचेगी? ग्राहक महिला के जवाब से खुश हुआ और शहद ले गया।”

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पहले प्रसंग में अगर आप देखें तो बात एक ही थी, बस दोनों ज्योतिषियों के कहने के ढंग अलग-अलग थे। एक ने उसी बात को इस तरह से कहा कि व्यक्ति को क्रोध आ गया जबकि दूसरे ने उसी बात को इस ढंग से कहा कि व्यक्ति बहुत खुश होकर लौटा।

दूसरे प्रसंग में आप देखेंगे कि दो लोग एक ही तरह का काम कर रहे हैं लेकिन उनके बोलने का, बात करने का ढंग दोनों को एक दूसरे से अलग करता है जिससे लोग कड़वा बोलने वाले व्यक्ति को नापसंद करते हैं और मीठा तथा मुस्कुराकर बोलने वाली महिला को पसंद करते हैं।

इस तरह के बहुत प्रसंग आपको रोजाना अपने घर में, रिश्तेदारी में, अपने आस पास मिल जायेंगे।
इसी तरह हम अपने बच्चों को भी कभी कभी बेवजह डांट देते हैं, या कभी कभी बच्चों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, या कभी बच्चे किसी परीक्षा में फेल हो गए या उनसे कोई काम बिगड़ गया या कोई गलती हो गयी तो बहुत बुरी तरह से डांटते हैं, या उस बात को लेकर बार बार ताने मारते हैं या किसी और बच्चे से उनकी तुलना करते हुए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, या उनसे बात करना बंद कर देते हैं। जिसका असर ये होता है कि बच्चे मन ही मन में हमसे चिढ़ने लगते हैं, या नफरत करने लगते हैं, या उनकी पढ़ाई पर असर पड़ने लगता है या बच्चे ज्यादातर गुमसुम रहने लगते हैं।
इसी तरह हम अपने बच्चों को भी कभी कभी बेवजह डांट देते हैं, या कभी कभी बच्चों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, या कभी बच्चे किसी परीक्षा में फेल हो गए या उनसे कोई काम बिगड़ गया या कोई गलती हो गयी तो बहुत बुरी तरह से डांटते हैं, या उस बात को लेकर बार बार ताने मारते हैं या किसी और बच्चे से उनकी तुलना करते हुए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, या उनसे बात करना बंद कर देते हैं। जिसका असर ये होता है कि बच्चे मन ही मन में हमसे चिढ़ने लगते हैं, या नफरत करने लगते हैं, या उनकी पढ़ाई पर असर पड़ने लगता है या बच्चे ज्यादातर गुमसुम रहने लगते हैं।

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इसी तरह घर में अपने बड़ों से बात करते हुए कभी कभी हम तेज आवाज या आक्रामक भाषा में बात करते हैं जिससे उन्हें मन ही मन बहुत दुःख पहुँचता है। पति या पत्नी गुस्सा होने पर एक दूसरे की पुरानी गलतियों को बार बार दोहराते हैं, ताने मारते हैं या कोई ऐसी बात कह देते हैं जो बहुत ही बुरी लगती है।

दोस्तों, बोले गए शब्द कभी वापस नहीं आते हैं। कड़वे बोल या कड़वी बात तीर की तरह चुभती हैं और हमेशा के लिए घाव दे जाते हैं। कभी कभी लाठी, पत्थरों या चाक़ू से भी इतनी चोट नहीं लगती है जितनी किसी के द्वारा कही गयी बात से लग जाती है।

व्यक्ति का बोलने का ढंग ही, उसके व्यक्तिव को दर्शाता है। किसी के बात करने के तरीके से ही लोग उस व्यक्ति के बारे में जान जाते हैं। इसलिए मनुष्य को सोच-समझकर उतना ही बोलना चाहिए जितना आवश्यक हो और इस ढंग से बोलना चाहिए कि किसी को दुःख ना पहुँचे या आपकी बात पर किसी को गुस्सा ना आ जाये। यदि आप किसी को अच्छा नही कह सकते हों तो आपको किसी को बुरा कहने का भी कोई अधिकार नहीं होता। मजाक में भी आपको ऐसी बात नहीं करनी चाहिये कि किसी को बुरा लगे। अगर आपको किसी को कोई कड़वी बात कहनी ही है तो उसे इस ढंग से कहें कि वो समझ भी जाये और उसे बुरा भी ना लगे। 
संत कबीर भी कहते हैं कि,
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।
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टैक्सी चलाने वाले ने खड़ा किया 45 हजार करोड़ का साम्राज्य..




जो लोग सफलता (success) की ऊँचाइयों को छूते हैं, आकाश की बुलंदियों पर पहुँचते हैं, उनमें से ज्यादातर बहुत से लोग बड़े ही कठिन संघर्षों, मुश्किलों और मुसीबतों का सामना करते हैं। सफल लोग अपनी मेहनत, लगन तथा अपनी अलग सोच से सारी मुश्किलों, मुसीबतों और संघर्षों पर विजय पाकर अपनी पहचान बनाते हैं, दुनिया में नाम कमाते हैं तथा एक अलग मुकाम हासिल करते हैं।

आज मैं आपके सामने ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहा हूँ जिन्होंने अपने संघर्षों के दिनों में होटलों में कमरे तक साफ किये, पेट भरने के लिए टैक्सी तक चलाई। लेकिन आज वही शख्स भारत के 10 सबसे अमीर लोगो में से एक हैं।

उनका नाम है मुकेश मिकी जगतियानी। मिकी जगतियानी दुबई के “LandMark Group” के मालिक हैं। तथा उनकी कुल सम्पत्ति लगभग 6.6 बिलियन डॉलर (44240 करोड़ रूपये by Bloomberg 2016) है। और वे भारत के दसवें तथा दुनिया के 271 वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं।

आइये जानते हैं उनकी फर्श से अर्श तक पहुँचने की संघर्षपूर्ण कहानी के बारे में।

प्रारम्भिक जीवन


मिकी जगतियानी के पिता मूल रूप से मुम्बई से थे। लेकिन बेहतर भविष्य के लिए उनके पिता 1950 में कुवैत चले गये। वहीँ पर मिकी का जन्म 15 अगस्त 1952 को हुआ। जब मिकी 3 साल के हुए तो उनके पिता ने मिकी तथा उनके बड़े भाई महेश को अपनी बहन के पास मुम्बई भेज दिया। इनकी शुरुआती शिक्षा मुम्बई तथा चेन्नई में हुई। 12 वर्ष की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए एक बोडिंग स्कूल में बेरुत भेज दिया गया। 17 वर्ष की उम्र में मिकी को एक Accounting स्कूल में पढ़ने के लिए लंदन भेजा गया लेकिन वहाँ पर मिकी कुछ exams नहीं दे पाए जिसके कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।

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संघर्ष का समय


स्कूल से निकाले जाने के बाद उनके पास कोई डिग्री नहीं थी। जिससे वो लंदन में कोई नौकरी कर सकें। अपना पेट भरने के लिए उन्हें वहाँ के होटलों में कमरा साफ करने का काम करना पड़ा। उसके बाद उन्होंने वहाँ पर टैक्सी चलाई।

एक अंग्रेजी पत्रिका को इंटरव्यू देते हुए मिकी ने बताया – “मैंने लंदन में अपने एक मित्र से पूछा कि लंदन में पेट भरने के लिए मुझे क्या काम करना चाहिए ? उसने मुझे मुर्दों को नहलाने का काम करने का सुझाव दिया या रात में उसकी टैक्सी चलाने को कहा। मुझे दूसरा काम ज्यादा आसान लगा इसलिए मैंने वहाँ पर टैक्सी चलाना शुरू कर दिया।”
उसके कुछ दिनों बाद मिकी दोबारा कुवैत लौट गये। उनके लौटने के कुछ दिनों बाद ही उनके भाई की ल्यूकीमिया से मौत हो गयी। उसके कुछ समय बाद ही उनकी माँ की कैंसर के कारण तथा पिता की डायबिटीज के कारण मृत्यु हो गयी।

उस समय को याद करते हुए मिकी कहते हैं कि मैं उस समय एक अनाथ लड़का था जो 21 साल की उम्र में बिना परिवार के, बिना नौकरी के तथा बिना किसी कॉलेज डिग्री के बिल्कुल अकेला था।

Business की शुरुआत


अपने पिता की मृत्यु के बाद मिकी ने बहरीन में उनकी Baby Products की दुकान को दोबारा शुरू किया। उस समय वे एक व्यक्ति से ज्यादा लोगो को नौकरी पर नहीं रख सकते थे। इसलिए उन्होंने ज्यादातर सारे काम खुद किये। 1973 में उन्होंने एक 5000 square foot का स्टोर खरीदा और उसका नाम “Baby Shop” रखा। जिसमें बच्चों के कपड़े तथा बच्चों के Products थे।

देखते ही देखते उनका उनकी ये BabyShop 1992 तक 6 Stores तथा 400 कर्मचारियों के साथ LandMark Group बन गयी।

दुबई में Business शिफ्ट किया


1992 में खाड़ी देशो में युद्ध होने के कारण उन्होंने अपना Business दुबई में शिफ्ट कर दिया। दुबई में शिफ्ट होने के बाद उन्होंने अपने Business का विस्तार किया और देखते ही देखते उनका Business अरब देशो तथा दक्षिण एशिया में एक बड़ा नाम बन गया। आज LandMark Group Retailing, Hospitality, फैशन, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर तथा होटल क्षेत्र में Business करता है और इसके 18 देशो में 1900 से ज्यादा Outlets हैं तथा इसमें 55000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।

पारिवारिक जीवन


मिकी जगतियानी बिल्कुल सादा जीवन जीना पसंद करते हैं। एक जानकारी के अनुसार इनके पास सिर्फ एक कार है। वह अपनी पत्नी रेनुका के साथ दुबई में रहते हैं। उनके 3 बच्चे हैं। जिनमें दो लड़की निशा जगतियानी तथा आरती जगतियानी और एक लड़का राहुल जगतियानी है। उनकी पत्नी रेनुका जगतियानी उनके बिजनेस में LandMark Fashion Line  को देखती हैं।

सामाजिक जीवन


मिकी जगतियानी बिल्कुल सादा जीवन जीते हैं। वह रहते तो दुबई में हैं लेकिन उन पर भारत तथा महात्मा गाँधी का काफी असर है। जगतियानी कहते है कि भारत में अमीरों और गरीबो के बीच में गहरी खाई है। मुम्बई में ज्यादातर गरीब बच्चों को सिर्फ एक वक्त का खाना ही मिल पाता है।

मिकी बहुत सी संस्थाओं को दान देते हैं तथा मुम्बई और चेन्नई में अनाथालय तथा वृद्धाश्रम चलाते हैं। सन 2000 में मिकी ने Life (LandMark International Foundation of Empowerment) नाम की संस्था की स्थापना की। उनकी संस्था गरीब बच्चो की शिक्षा, स्वास्थय, और पालन पोषण की पूरी देखभाल करती है। तथा लाखों लोगो को चिकित्सकीय सुविधाये उपलब्ध कराती है।

उपलब्धियाँ

  • Retail personality of the year in 2007 (Retail Middle East awards 2007).
  • Most Admired Retailer of the year – Lifestyle Department stores, India in 2008, (Image Retail Awards 2008).
  • Entrepreneur of the year, Micky Jagtiani in 2008 (Middle East Business Achievement Awards 2008).
  • Retailer of the year in 2008 ( Retail City Awards 2008).
  • Middle East Retailer of the year in 2008 (Retail Middle East Awards 2008).
  • Retail company of year in 2010 (Arabian Business Achievement awards 2010).
  • Most Admired Retail company of the year in 2011 ( Images Retail middle East Awards 2011).
  • 17th  India’s richest person in 2015 by Forbes.
  • 338th Billionaires of the world in 2016 by Forbes.
  • 10th India’s richest person in 2016 by Bloom Berg.
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तो दोस्तों, आपने देखा कि कैसे एक अकेले, होटल के कमरे साफ़ करने वाले, टैक्सी चलाने वाले शख्स ने अपनी मेहनत, लगन और मजबूत इच्छशक्ति के दम पर लगभग 45 हजार करोड़ रूपये का साम्राज्य  खड़ा कर लिया।

दोस्तों मिकी जगतियानी उन लोगों के लिए एक मिसाल है, एक प्रेरणा है जो मुश्किल और संघर्षपूर्ण हालातों से गुजर रहे है।






                                                        

Okayo The Champion - एक हाथ का बच्चा अपनी ज़िद से बना मार्शल आर्ट्स का चैंपियन



जापान  के  एक  छोटे  से  कसबे में  रहने  वाले  दस  वर्षीय  ओकायो  को  जूडो  सीखने  का  बहुत  शौक  था . पर  बचपन  में  हुई  एक  दुर्घटना  में  बायाँ  हाथ  कट  जाने  के  कारण  उसके  माता -पिता  उसे  जूडो सीखने  की  आज्ञा  नहीं  देते  थे . पर  अब  वो  बड़ा  हो  रहा  था  और  उसकी  जिद्द  भी  बढती  जा  रही  थी .

 अंततः  माता -पिता  को  झुकना  ही  पड़ा  और  वो  ओकायो  को  नजदीकी  शहर  के  एक  मशहूर मार्शल आर्ट्स   गुरु  के  यहाँ  दाखिला  दिलाने ले  गए .

गुरु  ने  जब  ओकायो  को  देखा  तो  उन्हें  अचरज  हुआ   कि ,  बिना  बाएँ  हाथ  का  यह  लड़का  भला   जूडो   क्यों  सीखना  चाहता   है ?

उन्होंने  पूछा , “ तुम्हारा  तो  बायाँ   हाथ  ही  नहीं  है  तो  भला  तुम  और  लड़कों  का  मुकाबला  कैसे  करोगे .”

“ ये  बताना  तो  आपका  काम  है” ,ओकायो  ने  कहा . मैं  तो  बस  इतना  जानता  हूँ  कि  मुझे  सभी  को  हराना  है  और  एक  दिन  खुद  “सेंसेई” (मास्टर) बनना  है ”

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गुरु  उसकी  सीखने  की  दृढ  इच्छा  शक्ति  से  काफी  प्रभावित  हुए  और  बोले , “ ठीक  है  मैं  तुम्हे  सीखाऊंगा  लेकिन  एक  शर्त  है , तुम  मेरे  हर  एक  निर्देश  का  पालन  करोगे  और  उसमे  दृढ  विश्वास  रखोगे .”

ओकायो  ने  सहमती  में  गुरु  के  समक्ष  अपना  सर  झुका  दिया .

गुरु  ने एक  साथ लगभग  पचास छात्रों  को  जूडो  सीखना  शुरू  किया . ओकायो  भी  अन्य  लड़कों  की  तरह  सीख  रहा  था . पर  कुछ  दिनों  बाद  उसने  ध्यान  दिया  कि  गुरु  जी  अन्य  लड़कों  को  अलग -अलग  दांव -पेंच  सीखा  रहे  हैं  लेकिन  वह  अभी  भी  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  कर  रहा  है  जो  उसने  शुरू  में  सीखी  थी . उससे  रहा  नहीं  गया  और  उसने  गुरु  से  पूछा , “ गुरु  जी  आप  अन्य  लड़कों  को  नयी -नयी  चीजें  सीखा  रहे  हैं , पर  मैं  अभी  भी  बस  वही  एक  किक  मारने  का  अभ्यास  कर  रहा  हूँ . क्या  मुझे  और  चीजें  नहीं  सीखनी  चाहियें  ?”

गुरु  जी  बोले , “ तुम्हे  बस  इसी  एक  किक  पर  महारथ  हांसिल  करने  की  आवश्यकता  है ”   और वो आगे बढ़ गए.

ओकायो  को  विस्मय हुआ  पर  उसे  अपने  गुरु  में  पूर्ण  विश्वास  था  और  वह  फिर  अभ्यास  में  जुट  गया .

समय  बीतता  गया  और  देखते -देखते  दो  साल  गुजर  गए , पर  ओकायो  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  कर  रहा  था . एक  बार  फिर  ओकायो को चिंता होने लगी और उसने  गुरु  से  कहा  , “ क्या  अभी  भी  मैं  बस  यही  करता  रहूँगा  और बाकी सभी  नयी तकनीकों  में  पारंगत  होते  रहेंगे ”

गुरु  जी  बोले , “ तुम्हे  मुझमे  यकीन  है  तो  अभ्यास  जारी  रखो ”

ओकायो ने गुरु कि आज्ञा का पालन करते हुए  बिना कोई प्रश्न  पूछे अगले  6 साल  तक  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  जारी  रखा .

सभी को जूडो  सीखते आठ साल हो चुके थे कि तभी एक  दिन  गुरु जी ने सभी शिष्यों को बुलाया और बोले ” मुझे आपको जो ज्ञान देना था वो मैं दे चुका हूँ और अब गुरुकुल  की परंपरा  के  अनुसार सबसे  अच्छे  शिष्य  का  चुनाव  एक प्रतिस्पर्धा के  माध्यम  से किया जायेगा  और जो इसमें विजयी होने वाले शिष्य को  “सेंसेई” की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा.”

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प्रतिस्पर्धा आरम्भ हुई.

गुरु जी ओकायो  को  उसके  पहले  मैच में हिस्सा लेने के लिए आवाज़ दी .

ओकायो ने लड़ना शुर किया और खुद  को  आश्चर्यचकित  करते  हुए  उसने  अपने  पहले  दो  मैच  बड़ी  आसानी  से  जीत  लिए . तीसरा मैच  थोडा कठिन  था , लेकिन  कुछ  संघर्ष  के  बाद  विरोधी  ने  कुछ  क्षणों  के  लिए  अपना  ध्यान उस पर से हटा दिया , ओकायो  को  तो  मानो  इसी  मौके  का  इंतज़ार  था  , उसने  अपनी  अचूक  किक  विरोधी  के  ऊपर  जमा  दी  और  मैच  अपने  नाम  कर  लिया . अभी  भी  अपनी  सफलता  से  आश्चर्य  में  पड़े  ओकयो  ने  फाइनल  में  अपनी  जगह  बना  ली .

इस  बार  विरोधी  कहीं अधिक  ताकतवर, अनुभवी  और विशाल   था . देखकर  ऐसा  लगता  था  कि  ओकायो उसके  सामने एक मिनट भी  टिक नहीं  पायेगा .

मैच  शुरू  हुआ  , विरोधी  ओकायो  पर  भारी  पड़ रहा  था , रेफरी  ने  मैच  रोक  कर  विरोधी  को  विजेता  घोषित  करने  का  प्रस्ताव  रखा , लेकिन  तभी  गुरु  जी  ने  उसे रोकते हुए कहा , “ नहीं , मैच  पूरा  चलेगा ”

मैच  फिर  से  शुरू  हुआ .

विरोधी  अतिआत्मविश्वास  से  भरा  हुआ   था  और  अब  ओकायो  को कम आंक रहा था . और इसी  दंभ  में  उसने  एक  भारी  गलती  कर  दी , उसने  अपना  गार्ड  छोड़  दिया !! ओकयो  ने इसका फायदा उठाते हुए आठ  साल  तक  जिस  किक  की प्रैक्टिस  की  थी  उसे  पूरी  ताकत  और सटीकता  के  साथ  विरोधी  के  ऊपर  जड़  दी  और  उसे  ज़मीन पर  धराशाई  कर  दिया . उस  किक  में  इतनी शक्ति  थी  की  विरोधी  वहीँ  मुर्छित  हो  गया  और  ओकायो  को  विजेता  घोषित  कर  दिया  गया .

मैच  जीतने  के  बाद  ओकायो  ने  गुरु  से  पूछा  ,” सेंसेई , भला  मैंने  यह प्रतियोगिता  सिर्फ  एक  मूव  सीख  कर  कैसे  जीत  ली ?”

“ तुम  दो  वजहों  से  जीते ,”  गुरु जी  ने  उत्तर  दिया . “ पहला , तुम  ने जूडो  की  एक  सबसे  कठिन  किक  पर  अपनी इतनी  मास्टरी  कर  ली कि  शायद  ही  इस  दुनिया  में  कोई  और  यह  किक  इतनी  दक्षता   से  मार  पाए , और  दूसरा  कि  इस  किक  से  बचने  का  एक  ही  उपाय  है  , और  वह  है  वोरोधी   के  बाएँ  हाथ  को  पकड़कर  उसे  ज़मीन  पर  गिराना .”

ओकायो  समझ चुका था कि आज उसकी  सबसे  बड़ी  कमजोरी  ही  उसकी  सबसे  बड़ी  ताकत बन  चुकी  थी .

मित्रों human being होने का मतलब ही है imperfect होना. Imperfection अपने आप में बुरी नहीं होती, बुरा होता है हमारा उससे deal करने का तरीका. अगर ओकायो चाहता तो अपने बाएँ हाथ के ना होने का रोना रोकर एक अपाहिज की तरह जीवन बिता सकता था, लेकिन उसने इस वजह से कभी खुद को हीन नहीं महसूस होने दिया. उसमे  अपने सपने को साकार करने की दृढ इच्छा थी और यकीन जानिये जिसके अन्दर यह इच्छा होती है भगवान उसकी मदद के लिए कोई ना कोई गुरु भेज देता है, ऐसा गुरु जो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी को ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बना उसके सपने साकार कर सकता है.




                                                          

         


Secret of Success - सफलता का रहस्य




एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या  है?

सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो. वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया.

लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.

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सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”

लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”

सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना  चाहते थे  तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.

दोस्तों, जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते  हैं तो more often than not…वो चीज आपको मिल जाती है. जैसे छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न past में जीते हैं न future में, वे हमेशा present में जीते हैं…और जब उन्हें खेलने के लिए कोई खिलौना चाहिए होता है या खाने के लिए कोई टॉफ़ी चाहिए होती है…तो उनका पूरा ध्यान, उनकी पूरी शक्ति बस उसी एक चीज को पाने में लग जाती है and as a result वे उस चीज को पा लेते हैं.

इसलिए सफलता पाने के लिए FOCUS बहुत ज़रूरी है, सफलता को पाने की जो चाहता है उसमे intensity होना बहुत ज़रूरी है..और जब आप वो फोकस और वो इंटेंसिटी पा लेते हैं तो सफलता आपको मिल ही जाती है.



                                                             


The Eagle - बाज की उड़ान



एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों  बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.

वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता .

फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-

” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”

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तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”

बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.

 दोस्तों , हममें से बहुत से लोग  उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.

आप चूजों  की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर  दिखाइए  क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.



                                                        

ब्लैक स्पॉट - Story on Counting Your Blessings


एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला, “चलिए, surprise test के लिए तैयार हो जाइये।

सभी स्टूडेंट्स घबरा गए…कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे।

“ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “ मैं question paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखिएगा।”

पेपर बाँट दिए गए।

“ठीक है! अब आप पेपर देख सकते हैं!”, प्रोफेसर ने निर्देश दिया।

अगले ही क्षण सभी question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट!

ये क्या सर, इसमें तो कोई question ही नहीं है?, एक छात्र खड़ा होकर बोला।

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प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है, आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”

स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answers लिखने लगे।

समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect कीं और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे।

लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।

प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है….मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…

देखिये…इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है…

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समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं…कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है।

क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करेक खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं…क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फॅमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं….क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।

चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को enjoy करना सीखें ….तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे!”



                                                            


‘सुरमन’, अनाथ बच्चों की ज़िंदगी की नई सुबह..




वो बच्चों को उनके खोए परिवार से मिलवाती है। वो अनाथ बच्चों को रहने के लिए छत देती है और उनकी जिंदगी के अकेलेपन को दूर करके उनकी जिंदगी में स्थिरता लाती है। यूं तो वो तीन बच्चों की मां है लेकिन 111 बच्चे जिन्हें उसने गोद लिया है वो भी उसे मां कहकर पुकारते हैं।

राजस्थान के जयुपर शहर में रहने वाली मनन चतुर्वेदी जो दूसरों के लिए जीती हैं। उनकी जिंदगी का एक ही लक्ष्य है दूसरों के चेहरों पर खुशी लाना। राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी अपने प्रयास से लगभग साढ़े चार सौ खोए बच्चों को उनके परिवारों से मिलवा चुकी है। यही नहीं वो लगभग 110 ऐसे बच्चों का संरक्षण भी कर रही हैं जिनका कोई नहीं है। मनन पेशे से एक फैशन डिजाइनर हैं उन्होंने दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग में कोर्स किया है। इसके अलावा वो पेंटिंग करती हैं, थियेटर में उनकी खासी रुचि है, वो गाना गाती हैं साथ ही कई सामाजिक मुद्दों पर वो शार्ट फिल्में भी बना चुकी हैं।


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दिल्ली में फैशन डिजाइनिंग के कोर्स के दौरान एक बार वे दिल्ली से जयपुर अपने घर जा रही थीं उस दौरान उन्होंने देखा कि जयपुर में सिंधी कैंप के पास एक छोटी सी बच्ची कूड़े के ढेर में कुछ ढूंढ रही थी उस बच्ची के बदन पर बहुत कम कपड़े थे और जो थे वो भी बहुत पुराने व फटे हुए। उस घटना ने मनन को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वे ऐसा क्या काम करें कि उस काम का असर गरीब लोगों पर पड़े। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वे ऐसे कपड़े डिजाइन करेंगी जिसे गरीब बच्चे भी पहन पाएं व वे कपड़े उनकी जरूरत के मुताबिक हों। इस घटना के बाद उन्होंने स्लम बस्तियों में जाना शुरू कर दिया और वहां पर रहने वाले गरीब बच्चों को जो गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते थे उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया।

उन्हें इस दौरान कई ऑफर मिले लंदन से फैशन डिजाइनिंग के लिए स्कॉलरशिप भी मिली लेकिन उन्होंने सब ठुकरा दिया मनन बताती हैं, उस समय मैने अपनी जिंदगी का लक्ष्य तय कर लिया था मैं करियर में आगे तो बढ़ना चाहती थीं लेकिन साथ ही गरीब बच्चों के लिए भी काम करना चाहती थीं और अगर उस समय मैं लंदन चली जाती तो मैं अपने मार्ग से भटक जाती इसलिए मैने निर्णय लिया कि मैं कहीं नहीं जाउंगी वे देश में रहकर ही गरीबों की सेवा करूंगी।

इस दौरान उनकी शादी हो गई और उनकी निजी जिंदगी में कई बदलाव भी आए। लेकिन उन्होंने गरीब बच्चों का साथ नहीं छोड़ा। एक बार कहीं जाते हुए उन्होंने रेलवे स्टेशन पर एक बच्चे को रोते हुए देखा जो बिलकुल अकेला था और लगातार रो रहा था। वो बच्चा अपने माता पिता से अलग हो गया था। मनन ने बच्चे के माता पिता को ढूंढने की काफी कोशिश की, लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद भी उनका कोई पता नहीं चला। फिर मनन उस बच्चे को अपने साथ ले आईं। इस घटने के बाद मनन ने अपने पास ऐसे बच्चों को रखना शुरू कर दिया जो अपने माता पिता से बिछड़ जाते थे। वे उन बच्चों के माता पिता को ढ़ूंढने में हर संभव मदद करती जगह जगह पोस्टर लगवातीं और अपना नंबर देतीं ताकि उनके माता पिता उनसे संपर्क कर सकें। इसी कड़ी में मनन ने साढ़े चार सौ बिछड़े बच्चों को उनके माता पिता से भी मिलवाया।


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मनन ने ‘सुरमन संस्था’ की भी स्थापना की। इस संस्था का मकसद उन बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना था और बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करना था आज यहां पर रहने वाले कई बच्चे कॉलेज जाते हैं मार्शल आर्ट्स सीखते हैं वेबसाइट डिजाइनिंग का काम कर रहे हैं। यहां पर रहने वाले बच्चों की उम्र 19 साल तक है और यहां पर रहने वाले बच्चों में अधिकांश लड़कियां हैं।  मनन आज 110 से ज्यादा बच्चों की देखभाल कर रहीं हैं। उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है जिस पर फोन करके आप अनाथ बच्चों की जानकारी दे सकते हैं और फिर मनन की टीम उन बच्चों को अपने यहां ले आती है।  आज सुरमन संस्थान में केवल अनाथ बच्चे ही नहीं हैं, यहां अनाथ बच्चों के अलावा विधवा महिलाएं रहती हैं व वो वृद्ध लोग रहते हैं जिनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया है।

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बच्चों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण मनन अब उनके लिए एक बड़ा घर बनवा रही हैं जहां पर 1000 बच्चों के रहने की व्यवस्था हो सके। मनन को किसी भी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिलती वो सारे काम खुद से करती हैं। खर्च चलाने के लिए मनन फैशन डिजाइनिंग के अलावा पेंटिग व थियेटर करती हैं। आज मनन एक मिसाल हैं वो हम सबको सीख देती हैं कि मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं है और हम सबको मिलकर अपने निजी स्वार्थ को भूलकर समाज के लिए काम करना होगा।



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एक डॉक्टर गांव-गांव में क्यों बांट रही हैं चप्पल ?



पेशे से वो डॉक्टर हैं लेकिन उनकी जान बसती है उन बच्चों में जो सड़क पर भीख मांगते हैं या फिर कोई छोटा मोटा काम धंधा कर अपना गुजारा चलाते हैं। ये बच्चे आपको बाजार, सिनेमाहॉल और दूसरी सार्वजनिक जगहों के आसपास मिल जाएंगे जो अक्सर नंगे पैर और फटेहाल हालात में रहते हैं। डॉक्टर समर हुसैन जानती हैं कि इन बच्चों में बीमारी की मुख्य वजह उनका नंगे पैर रहना है। इसलिए वो इन बच्चों को मुफ्त में चप्पल बांटती हैं और वो ये काम अपने संगठन ‘लिटिल हॉर्टस’ के जरिये करती हैं। फिलहाल वो इस काम को दिल्ली(Delhi) के अलावा जयपुर(Jaipur) में कर रही हैं।

डॉक्टर समर हुसैन फिलहाल जयपुर से कम्यूनिटी मेडिसन में एमडी की पढ़ाई कर रही हैं। इसलिए उनको पढ़ाई के सिलसिले में अलग-अलग गांवों में जाना पड़ता है। इस दौरान समर ने देखा, ऐसी जगहों में रहने वाले बच्चों की पैरों में चप्पल नहीं होती हैं। मैं और मेरे साथी गांव के उन बच्चों को खाना, कपड़े और खिलौने देते थे। दीवाली में हम उन बच्चों को पटाखे और बिरयानी भी देते थे। कुछ समय तक ऐसा करने के बाद हमें लगा कि इस तरह से हम उनकी मदद कुछ ही दिन के लिये कर पाते थे। तब मैंने सोचा कि अगर हम इन्हें चप्पल दें तो वो कम से कम वो 6 महीने तो चलेगी।

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 समर ने देखा कि गांव में बच्चे नंगे पैर ही घूमते थे इस वजह से उनको पैरों में इन्फेक्शन और कई दूसरी बीमारियां हो जाती थीं। जिसके बाद उन्होंने नवम्बर 2015 को ‘लिटिल हॉर्ट्स’ की स्थापना की। डॉक्टर समर मानती हैं कि देश में काफी सारे संगठन काम कर रहे हैं जो कि गरीब बच्चों की किसी ना किसी तरह से मदद कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कोई संगठन नहीं हैं जो इस तरह का काम करता हो। डॉक्टर समर बताती हैं,

एक बार मैं अपने दोस्तों के साथ जयपुर के मॉल में घूमने के लिए गयीं। घूमने के बाद जब मॉल से बाहर निकली तो मैंने वहां पर ऐसे गरीब बच्चों को देखा जिनके पैरों में चप्पल नहीं थीं। क्योंकि गरीबी के कारण उनके लिए अपने लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल था ऐसे में वो अपने लिए चप्पल कहां से खरीद सकते हैं। उसी समय मैंने सोच लिया कि मैं अब ऐसे बच्चों को चप्पल पहनाउंगी।

डॉक्टर समर यह सोचकर हैरान रहतीं कि पैसों की तंगी के कारण एक ओर जहां ये बच्चे अपनी मामूली जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते, वहीं जब आम लोग जब कहीं बाहर घूमने जाते हैं तो 5-6 सौ रुपये ऐसे ही खाने पीने में खर्च कर देते हैं। लेकिन अगर उन पैसों में से सिर्फ 100 रूपये इन बच्चों पर खर्च किया जाए तो उससे उनके लिए 2 जोड़ी चप्पल जरूर आ सकती है।

बच्चों को चप्पल बांटने से पहले डॉक्टर समर ने अपने कुछ दोस्तों से बात की और आपस में मिलकर पैसे जुटाए ताकि गरीब बच्चों के लिए चप्पल खरीदी जा सके। इसके अलावा उन्होने क्राउड फंड़िंग के जरिये पैसा इकट्ठा किये। जो पैसे इकट्ठा हुए उससे गरीब बच्चों के लिए चप्पलें खरीदी गईं। इन चप्पलों को उन्होंने रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और गलियों में रहने वाले गरीब बच्चों को बांटना शुरू किया। डॉक्टर समर ने अपने इस कैम्पेन की शुरूआत दिल्ली और जयपुर से की। चप्पल बांटने से पहले उनकी टीम सबसे पहले उस इलाके का सर्वे करती है जहां पर उनको चप्पल बांटनी होती है। वहां पर टीम के सदस्य देखते हैं कि कहां पर ज्यादा बच्चों के पास चप्पल नहीं हैं। इस दौरान वो उन बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को चप्पल पहनने के फायदे भी बताते हैं ताकि उनका बच्चा रोज चप्पल पहने। डॉक्टर समर की टीम में इस वक्त करीब 30 वालंटियर जुड़े हैं जो कि मेडिकल के अलावा एमबीए और इंजीनियरिंग क्षेत्र से जुड़े छात्र हैं। डॉ समर अपने इस अभियान को देश के और शहरों में विस्तार देना चाह रही हैं। पर फंडिंग आड़े आ रही हैं।

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‘लिटिल हार्ट्स’ नाम से एक फेसबुक पेज भी बनाया गया है, जहां पर अगर कोई व्यक्ति पैसे या चप्पल दान में देना चाहता है तो वो जानकारी जुटा कर ऐसा कर सकता है। इसके अलावा डॉ समर क्राउड फंडिंग के जरिये पैसा इकट्ठा कर गरीब बच्चों के बीच चप्पल बांटने की रफ्तार को बढ़ाना चाहती हैं। डॉक्टर समर के मुताबिक उनको कोई भी कम से कम 100 रुपये भी दान में दे सकता है। एमडी की पढ़ाई कर रही डॉक्टर समर का ये अंतिम साल है, इसलिये वो मानती हैं कि अपनी पढ़ाई के कारण इस काम में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती, लेकिन पढ़ाई खत्म करने के बाद वो इस काम को तेजी से आगे बढ़ाएंगी। डॉक्टर समर फिलहाल इस काम को शनिवार और रविवार के दिन करती हैं। उनकी योजना है कि वो ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों के बीच चप्पल बांटने के अलावा उन बच्चों को स्कूल भेजें जो या तो स्कूल नहीं जाते या अलग-अलग कारणों से जिनका स्कूल छूट गया है। ताकि ऐसे बच्चे भी पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।


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